मेरी प्रतिनिधि लघुकथाएँ
लघुकथा सम्राट, हिन्दी के शीर्षस्थ लघुकथाकार कीर्तिकुमार सिंह ने पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी साहित्य की ‘लघुकथा' विधा में इतनी तूफानी गति से हस्तक्षेप किया है कि उनके साथ-साथ लघुकथा विधा ने हिन्दी साहित्य के शिखर पर हस्ताक्षर कर दिया। लघुकथा को कहानी के स्तर से स्वतन्त्र विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय उन्हीं को है।
इनकी लघुकथाएँ अपनी सटीकता के लिए जानी जाती हैं। मध्यवर्ग, निम्नमध्यवर्ग, निम्नवर्ग की संवेदनाओं को खुली आँखों से देखने की जैसी दृष्टि कीर्तिकुमार सिंह के पास है, वैसी दृष्टि आज कम ही कथाकारों के पास दिखायी देती है। यथार्थ पर उनकी पकड़, आधुनिक वैज्ञानिक सोच, उपभोक्तावादी संस्कृति, उत्तरआधुनिकता से जन्मे तमाम विमों पर उनकी पैनी नज़र है। उनकी लघुकथाएँ समाज के निरन्तर अमानवीय होते जाने के मूल कारणों को रेखांकित करती हैं।
उनकी भाषा की ताकत ही उन्हें सर्वश्रेष्ठ कथाकारों में स्थान दिलाती है। उनकी भाषा की खरोंच, ताप और गरमाहट में एक आदिम लय भी है और परिवर्तनशील सर्जनात्मक संगीत भी। बल्कि जिस तरह एक समकालीन बिन्दु पर दोनों आकर मिलते हैं, वहाँ एक अद्भुत पारदर्शी चमक उपस्थित होती है जो पाठक के साथ एक आत्मीय सम्बन्ध बनाती है। उनकी कहानियों में जीवन का कोई बहुत बड़ा सन्दर्भ या बहुत बड़ा सत्य उद्घाटित नहीं होता, बल्कि जीवन के छोटे-छोटे प्रसंगों को बहुत ही स्वाभाविक ढंग से उकेर देना उनकी खास पहचान है।