मोर का पंख तथा अन्य कहानियाँ

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मोर का पंख तथा अन्य कहानियाँ - 
'म्हारे विसाल नै पूरी किताब याद सै... ' दादी हुक्की गुड़गुड़ाते हुए अक्सर कहती और वह तुरन्त सभी पाठों के शीर्षक कवितामय ढंग से गा देता। इन पाठों का क्रम स्वरों की मात्राओं के अनुसार था। लेकिन बच्चे इन्हें गाते हुए एक स्वतन्त्र पाठ बना देते थे —यथा 'रानी, मदन, अमर, माँ-पिताजी, आगे देखो, बन्दर वाला, भालू वाला, पंख, मोर का पंख... ľ उसके ज़ेहन में आख़िरी पाठ अटक गया। मोर का पंख। इसकी कहानी उसे आज भी याद है।
...बहुत समय पहले की बात है। किसी बाग़ में एक कौआ रहता था। उसे एक दिन बाग़ में मोर का एक सुन्दर पंख मिला। उसे वह पंख बहुत अच्छा लगा। उसे उस पंख से इतना लगाव हो गया कि उसने वह अपनी पूँछ में लगा लिया। अब वह स्वयं को मोर समझने लगा। वहीं बाग़ में कुछ मोर नाच रहे थे कौआ भी मोरों के साथ नाचने लगा। ख़ुशी से वह काँव-काँव भी करने लगा। मोरों ने उसे भगा दिया, क्योंकि उसका केवल एक पंख मोर जैसा था, शेष तो वह कौआ ही था। किन्तु वह मोर के पंख को छोड़ नहीं पाता। वह कौओं में जाता है। लेकिन कौवे भी उसे भगा देते हैं, क्योंकि मोर के पंख से वह सबसे अलग लग रहा था। वह पंख का मोह नहीं छोड़ पाता। इस कारण वह ना मोरों में रह पाया ना कौओं में। दोनों तरफ़ से उसे भगा दिया गया।
चौथी कक्षा में पढ़ी यह कहानी विशाल के दिलो-दिमाग़ में फ़िल्म की तरह चल रही थी। उसके सारे शरीर में चुनचुनाहट-सी होने लगी। लगा कि वो मोर का पंख उसकी देह में उग आया है।.....-(पुस्तक अंश)

अन्तिम पृष्ठ आवरण - 
“तू नहीं जानता तूने कितने मार्के की बात कही है, हर तरफ़ यही तो हो रहा है, एक तरफ़ तो ये लोग कपड़ों पर राम-राम लिखकर जनता को लूट रहे हैं और दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियाँ राम के नाम पर जनता का कई सालों फुट्टू खींचकर चली गयीं,” शिवपाल चिन्तन के लहज़े में बोल रहा था, "और सुन! अब वे साले हमारे वाल्मीकि भगवान को भी राजनीति के इस कीचड़ में खींच रहे हैं। कहते हैं कि राम-मन्दिर के साथ वाल्मीकि-मन्दिर भी बनेगा।”
“अच्छा...इसका मतलब बनिया-बाम्हनों की चोर टोली को हमारी ताक़त की ज़रूरत भी पड़ गयी,” हीरो ने अपने ही अन्दाज़ में कहा।
“ये भारतीय जनता है प्यारे। धर्म के नाम पर इसकी जो जितनी माँ बहन एक करे उतना ही ये लोग उसकी जय-जयकार कर सर माथे पर बिठाते हैं। अब अपने ही समाज को ले लो धर्म हमारी सबसे ज़्यादा मारता है उसी के देवी-देवताओं पर हमारे नाम रखे जाते हैं...गणेश, शंकर, राम, किशन, नाम के पहले राम बाद में भी राम 'रामरत्न राम' जैसे साला धर्म हमारे अन्दर घुसड़कर ही रहेगा।" शिवपाल तैश में आ गया।

ISBN
9789350729779
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