म्रू

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म्रू -
दोपहर एक बजे लाल झंडे में लिपटे गले-कान-नाक में रूई से देवल राइ ट्रक में चिरिखेरा के लिए रवाना हुए!
ट्रक सीधे श्मशान नहीं ले जाया गया। खेड़गाँव, बन्दाचिकी, हेसला, एपीसी मिल श्रमिकों का एआईटीयूसी यूनियन का छोटा दल, पूर्व-चिरिखेरा के लोग-बाग़ दौड़ते हुए आ पहुँचे। -चार बजे से बिठाये रखा था।
-कैसे जीत पायेगा, धीरज ?
-बहुत धोखा भया कॉमरेड जी के साथ...
नेताओं को अविचल रहना पड़ा। प्रबाल बिलकुल अन्दर से ही अविचल था। वह अपने बप्पा की पार्थिव देह पर हाथ रखे बैठा रहा। घर के क़रीब धूलि-धूसर और टूटी-फूटी रेलिंग से घिरे चिल्ड्रेन्स पार्क के सामने ट्रक रोक दिया गया। नीचे एक खटिया बिछा दी गयी थी। बहरहाल, श्मशान तक बहुत कम नेता ही पहुँचे।
प्रबाल और कमली अन्त तक निश्चल खड़े रहे।
चिता बुझ आयी।
कमली ने कहा- बप्पा क्यों गये? उन्हें इतना प्रेशर था।
प्रबाल ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया - पार्टी का... हुक्म...
म्रू लोग इसी तरह मर जाते हैं.... ऐसा ही होता है।

ISBN
9789350009734
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