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मुहाजिरनामा

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मुहाजिरनामा - 
बुद्ध और महावीर को घर छोड़ना नहीं पड़ा। उनके जीवन में ऐसी क्रान्ति घटी कि उनके महल अपने आप छूट गये, छोड़ने और छूट जाने में बड़ा अन्तर है जब बुद्ध और महावीर से घर छूटा तो वे दोबारा वापस अपने महलों में नहीं लौटे। उन दोनों के जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ, लेकिन एक आम आदमी को हालात के चलते, या यूँ कहें कि ज़बरदस्ती घर से अलग कर दिया जाये तो भौतिक रूप से घर तो छूट जाता है लेकिन यादों में कभी नहीं छूटता, जैसे बचपन का प्यार ताउम्र याद रहता है। भले ही हम जीवन के किसी भी पड़ाव पर खड़े हो। ठीक उसी तरह जब भारत और पाकिस्तान का बँटवारा हुआ और हालात के चलते जिन ने अपना घर-बार, आशियाना छोड़ा, उनके दिल से कभी कोई चीज़ छूट नहीं पायी और हमारा मन भी कुछ ऐसा ही है कि जब कोई चीज़ हमसे ज़बरदस्ती छूट जाती है तो हमारे मन की बात हमारे दिल के और क़रीब आ जाती है। लेकिन मुनव्वर राना ने इस अहसास को, और इस अहसास के दर्द को जिस शिद्दत से महसूस किया और अपनी शायरी में पिरोया है वो कभी ना भूलने वाला अहसास है। उनकी शायरी पढ़ने के बाद आपको अपना माजी ख़ुद-ब-ख़ुद याद आ जायेगा और आपका मन करेगा कि दिल खोल कर रोयें। 'मुहाजिरनामा' वो रचना है जिसके तअल्लुक़ से मुनव्वर राना बरसों नहीं बल्कि सदियों तक याद किये जायेंगे। बकौल मुनव्वर राना...
मंज़िल क़रीब आते ही एक पाँव कट गया 
चौड़ी हुई सड़क, तो मेरा गाँव कट गया।
-उपेन्द्र राय
(एडिटर एवं न्यूज़ डायरेक्टर सहारा मीडिया)

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