नागार्जुन मेरे बाबूजी
नागार्जुन : मेरे बाबूजी -
वैद्यनाथ मिश्र नाम का एक ही व्यक्ति दो नामों से भारतीय साहित्य की दो भाषाओं में विख्यात है। नागार्जुन के रूप में हिन्दी में कबीर, भारतेन्दु, प्रेमचन्द और निराला की अगली कड़ी होकर इस युग का जनकवि। यात्री के रूप में वही व्यक्ति मैथिली साहित्य का महाकवि, युगपुरुष। कई व्यक्तिवाचक संज्ञाओं को धारण करने वाले इस एक व्यक्ति में ऊपर से ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता जो इसे असाधारण सिद्ध कर सके।
'नागार्जुन : मेरे बाबूजी' एक ऐसी पुस्तक है जिसे जीवनी, आत्मकथा और संस्मरण के बीच या बाहर की विधा मानी जाएगी। यह एक रचनाकार की संघर्ष गाथा का स्नोप्सिस है। जनकवि/महाकवि/ रचनाकार/ अभिभावक के व्यक्तित्व और कृतित्व के कुछ ऐसे पक्ष यहाँ दिखते हैं जिनके आधार पर कई ग्रन्थ रचे जा सकते हैं।
किसी भी रचनाकार पर काम करने के मुख्य स्रोत उनकी जीवन कथा ही होती है। रचनाकार की जीवन गाथा परिवार और अपने समाज के साथ मिलकर पूरे जनमानस पर एक अलग ढंग से प्रभाव डालती है। किसी भी रचनाकार का सामाजिक दायरा, पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक स्रोत को ढंग से जाने बिना हम उसके कृतित्व और व्यक्तित्व को समझने में सम्भवतः अक्षम हो जाते हैं।
युगप्रवर्त्तक रचनाकार पर, उसकी मौजूदगी में पुत्र द्वारा जिस ढंग से यहाँ लिखा गया है, एक ख़तरनाक काम है-शोभाकांत ने ख़तरे की सीमा तक जाकर निभाया है...