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Bharatiya Jnanpith

नागमण्डल

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9788126330805
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नागमण्डल - 
गिरीश कार्नाड का बहुचर्चित नाटक 'नागमण्डल' दक्षिण भारत में प्रचलित लोक-कथा पर आधारित है। भारतीय आख्यानों में नाग का इच्छित रूप धारण कर लेना एक जनप्रिय एवं रोचक कथावस्तु रही है। इस नाटक में कार्नाड ने नाग को पुरुष के विकृत भावों का प्रतीक मानकर नारी के असहाय-बोध को उजागर किया है। पति-पत्नी की मानसिकता और बढ़ते हुए निरन्तर अन्तर्द्वन्द्व को बड़े नाटकीय एवं तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
अभिनय और संवाद की दृष्टि से गिरीश कार्नाड का यह नाटक बहुत सफल माना गया है।

ISBN
9788126330805
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
गिरीश कर्नाद (Girish Karnad)

"डॉ. गिरीश कार्नाड - कन्नड़ साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक भारतीय रंगमंच एवं सिनेमा जगत में बहुचर्चित, मेधावी तथा अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अभिनेता और निर्देशक। जन्म : 3 मई, 1938, माथेरान (महाराष्ट्र) में। 'रहोड्स स्कॉलर' होकर ऑक्सफ़ोर्ड से राजनीति, दर्शन और अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा। भारत में अध्ययन-अध्यापन के साथ विदेश के विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर भी। कन्नड़ में प्रकाशित उनके प्रमुख नाटक हैं—ययाति (1961), तुग़लक (1964), ह्रयवदन (1971), अंजुमल्लिगे (1977), हित्तिना हुंजा (1980), नागमण्डल (1988), तलदण्ड (1990) और अग्नि मत्तु माले (1995)। कुछेक रेडियो नाटक भी। "

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