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नाममाला

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नाममाला सभाष्य
यों तो धनंजय (आठवीं-नौवीं शती) कृत नाममाला के अनेक संस्करण विविध प्रकाशनगृहों से प्रकाशित हो चुके हैं, लेकिन अमरकीर्ति के भाष्य के साथ भारतीय ज्ञानपीठ से यह पहली बार सन् 1949 में प्रकाशित हुआ था। अमरकीर्ति ने नाममाला के प्रत्येक शब्द की विस्तार से व्युत्पत्ति तो दी ही है, अपनी दृष्टि में आये कुछ पर्यायवाची शब्दों को भी शामिल किया है।
महाकवि धनंजय ने 200 श्लोकों में ही संस्कृत भाषा के प्रमुख शब्दों का चयन कर इस ग्रन्थ को समृद्ध किया है। इस भाष्य में प्रत्येक शब्द की व्याकरण-सिद्ध व्युत्पत्ति सूत्र-निर्देशपूर्वक बताई गयी है।
पुस्तक का सम्पादन पं. शम्भूनाथ त्रिपाठी, व्याकरणाचार्य ने बड़ी सावधानी से तथा प्रमाणों के उपयुक्त उद्धरण देते हुए किया है। ग्रन्थ के अन्त में 'अनेकार्थ निघण्टु' एवं 'एकाक्षरी कोश' को भी सम्मिलित कर लिया गया है।
शोधार्थियों तथा जिज्ञासु पाठकों को ध्यान में रखते हुए इस दुर्लभ कृति का नया संस्करण प्रकाशित करने में भारतीय ज्ञानपीठ हर्ष का अनुभव करता है।

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