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नम्बरदार का नीला

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नम्बरदार का नीला - 
सय्यद मुहम्मद अशरफ़ की गणना उर्दू के प्रथम श्रेणी के साहित्यकारों में की जाती है। उर्दू कहानियों में जब प्रतीकात्मक शैली का चलन आम था उस समय इन्होंने कहानियों के स्वरूप को इस तरह से परिवर्तित किया कि कहानियों से जो कहानीपन समाप्त हो चुका था उस कहानीपन को वापस लाकर उर्दू पाठक वर्ग और कहानी के बीच के ख़ालीपन को न सिर्फ़ भरा बल्कि उनमें रुचि पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

उर्दू में सय्यद मुहम्मद अशरफ़ का पहला कहानी संग्रह 'डार से बिछड़े' 1994 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की विशेषता इसी बात से साबित होती है कि जब यह किताब प्रकाशित हुई उस दौर में अपनी लेखनी-प्रतिभा से उस समय के सभी सचेत पाठकों और आलोचकों को अपने में समेट ली थी। 'डार के बिछड़े' की रचनात्मकता की यहाँ क़ुर्रतुलऐन हैदर की इन पंक्तियों से लगायी जा सकती है “जब इस नयी दुनिया की पंचतन्त्र लिखी गयी, सय्यद मुहम्मद अशरफ की चन्द कहानियाँ उसमें ज़रूर जगह पायेंगी।" ध्यातव्य है कि सय्यद मुहम्मद अशरफ़ की कुछ कहानियों में मानस के धरातल पर इन्सान से जानवर और जानवर से इन्सान की बराबर की आवाजाही है जिसकी वजह से जहाँ एक तरफ़ हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ घोर आश्चर्य, रुचि एवं परिणाम के मिले-जुले भाव हमें अन्त तक जिज्ञासु बनाये रखते हैं, कि कहानी का पात्र वास्तव में इन्सान है या हैवान?

"नम्बरदार का नीला" उर्दू में 1997 में प्रकाशित हुआ। इस में एक ऐसे नम्बरदार की कहानी है जो अपनी दौलत की हिफाज़त के लिए एक नीला पालता है जो नम्बरदार के यहाँ रहते-रहते अपने मूल स्वभाव को खो देता है और पूरे गाँव-ज्वार में उत्पात मचा देता है। संक्षिप्त में हम इस उपन्यास के बारे में यही कह सकते हैं। परन्तु इस उपन्यास में हम उस एक एक धड़कन को गिन सकते हैं, छू सकते हैं और उसका अनुभव कर सकते हैं जो हमारे समाज में भयानक बदलाव के रूप में हमारे सामने आ रहा है, जहाँ इन्सान में हैवान और हैवान में इन्सान उसी प्रकार समा गया है जैसे गूँथे हुए आटे में पानी।

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9788181434494
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