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नयचक्को (नएचक्र)

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Nayachakko (Nayachakra)
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णयचक्को (नयचक्र)
जैनधर्म को सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए नय एवं प्रमाण का ज्ञान होना अनिवार्य है। ये दोनों ही वस्तु-स्वरूप का निश्चय कराने के लिए मुख्य साधन हैं। अनेकान्त का मूल ही नय है। आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य समन्तभद्र के अतिरिक्त अन्य प्राचीन आचार्यों ने भी प्राकृत भाषा में नय विषय को लेकर ग्रन्थ-रचनाएँ की हैं-इसका संकेत 'णयचक्को' (नयचक) में मिलता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'णयचक्को' आचार्य माइल्लघवल की एक श्रेष्ठ एवं अति महत्त्वपूर्ण रचना है। यह कृति यद्यपि आचार्य देवसेन के नयचक्र से भी प्रभावित है, फिर भी यह एक प्रामाणिक तथा विशद रचना होने के कारण इसकी अपनी उपयोगिता है। इसका अध्ययन कर लेने पर सम्पूर्ण नय का विषय स्पष्ट हो जाता है।
नयचक्र की चर्चा में द्रव्य और पर्याय के अतिरिक्त आगम-अध्यात्म की कथन-पद्धति में भेद होने के कारण उनके भेद-प्रभेदों का ज्ञान कराया जाता है। यही कारण है कि द्रव्यस्वभावप्रकाशक को जिन बारह अधिकारों में विभक्त किया गया है, उनमें से नय एक है। अतः प्रस्तुत ग्रन्थ में द्रव्य, गुण तथा पर्याय को समझाने के लिए विस्तार से नयों का वर्णन किया गया है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

जैनदर्शन में वर्णित वस्तु-स्वरूप को समझने के लिए यह एक अनिवार्य ग्रन्थ है।

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Nayachakko (Nayachakra)
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