निबन्धों की दुनिया : केदारनाथ अग्रवाल

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प्रगतिशील लेखन के प्रमुख स्तम्भों में केदारनाथ अग्रवाल अग्रणी हैं। संवेदनशील भाव-तन्त्र और गहन वैचारिकता की संहिति से उनकी सृजनशीलता आकार लेती हैं-कविता और गद्य दोनों में।

उनकी गद्य-रचनाओं का वस्तुजगत उतना ही ठोस, मूर्त और पारदर्शी है जितना उनके काव्य का। न दुराव-छिपाव न भाषिक पेचीदगियाँ । अपने निबन्धों में उन्होंने अपनी कविता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वैचारिक आधार का खुलासा किया है। निबन्धों में उनका बौद्धिक, अपने सृजन के वैचारिक आधार के प्रखर प्रवक्ता के रूप में सामने आता है।

उनकी शैली में ध्वंसात्मकता, हठाग्रह और दुर्भाव से नहीं निश्छल आत्मविश्वास और वैचारिक निष्ठा से पैदा होती है। केदारनाथ अग्रवाल की ख्याति यद्यपि कवि-रूप में अधिक हुई, पर उनका चिन्तक भी काव्य-सृजन के समानान्तर सक्रिय रहा। उन्होंने काव्य और जीवन से सम्बद्ध अनेक प्रश्नों पर विचार करने के अलावा अपने वर्तमान और अतीत दोनों समय-खण्डों के रचना-कर्म का लेखा-जोखा भी प्रस्तुत किया-पूरे समीक्षात्मक-विवेक के साथ । उनकी हर बात से सहमति भले ही न हो, पर उनकी वैचारिक दृढ़ता और बेबाक अभिव्यक्ति में सन्देह की गुंजाइश नहीं मिलती।

प्रस्तुत निबन्ध संग्रह इस चिन्तक रचनाकार की मानसिक बनावट और समीक्षात्मक-विवेक का साक्षात्कार कराएगा और मूलतः अभिधा की शक्ति और सौन्दर्य के कृतिकार रूप से साझेदारी का अवसर भी प्रदान करेगा।

ISBN
9789350721629
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