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"पल्लवी - 'पल्लवी' डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' का नया उपन्यास है। अपने पाठ में बहुवचनी इस उपन्यास में लेखक ने आद्योपान्त एक ऐसी मासूमियत का नज़ारा किया है, जिसका अभाव आज के तथाकथित बौद्धिक साहित्य में परिलक्षित होता है। यह विदित रहे कि तमाम प्रचलित (और बहुधा प्रशंसित) वज़नी छद्मों से किनाराकशी करने मात्र से ही यह लेखकीय मासूमियत नहीं आती, 'पल्लवी' में हम उस साहस से भी बारहाँ दो चार होते हैं जो सभासदों की क़सीदाकारी के बीच अचानक शहंशाह की नंगई को उजागर कर देता है। लेखक इस उपन्यास में पन्ने-दर-पन्ने इस साहसिक मासूमियत को किसी औज़ार की तरह इस्तेमाल करता दिखता है। दरअसल आज के स्फीतिपरक; बड़बोले और चीख़-चीख़कर दर्ज किये गये मोटे-दबंग शब्दों से अँटे युग को ठीक-ठीक विवक्षित करने तथा निरन्तर छीजते जाते मानवीय मूल्यों को पुनः स्थापित करने का इससे कारगर उपाय कुछ हो भी नहीं सकता था। उपन्यास में ध्रुव और पल्लवी का प्लेटोनिक प्रेम, ध्रुव का धीरोदात्त चरित्र, तत्पश्चात् उन उच्च चारित्रिक मूल्यों का पल्लवी में सन्निवेश बहुत ही रोचक व विश्वसनीय दीख पड़ता है। लेखक ने इन चरित्रों का कंट्रास्ट रचने के लिए कुछ और भी चरित्र— बिन्दु, वकील साहब, बिन्दु की भाभियाँ, पल्लवी के पिता इत्यादि भी सृजित किये हैं, नतीजतन श्याम के परिपार्श्व में श्वेत की धवलता और भी निखरकर उद्भासित हुई है। संक्षेप में, एक नितान्त नये आस्वाद का उपन्यास। सर्वथा स्वागतयोग्य।– कुणाल सिंह "
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रमेश पोखरियाल निशंक (Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank )

"रमेश पोखरियाल 'निशंक'- जन्म: 15 अगस्त, 1959, पौड़ी गढ़वाल के पिलानी नामक गाँव में। प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा गाँव में हुई, तत्पश्चात् हरिद्वार में उच्च शिक्षा प्राप्त की। शुरू से ही साहित्य, पत्रकारिता व राजनीति में रुचि। प्रकाशन : 'समर्पण', 'मुझे विधाता बनना है', 'जीवन पथ में', 'मातृभूमि के लिए', 'प्रतीक्षा' और 'संघर्ष जारी है' (कविता संग्रह); 'रोशनी एक किरण', 'भीड़ साक्षी है', 'विपदा जीवित है', 'खड़े हुए प्रश्न' और 'टूटते दायरे' (कहानी संग्रह); 'पहाड़ से ऊँचा', 'बीरा', 'शक्तिरूपा' और 'पल्लवी' (उपन्यास)। रचनाएँ तमिल, तेलुगु, मराठी सहित जर्मन तथा अंग्रेज़ी में अनूदित। "

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