पटकथा और अन्य कहानियाँ
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मिसेज देशमुख ने एक दिन मुझे उनके सामने ही खींच लिया था । देशमुख की उपस्थिति मुझे हताश कर रही थी। वे वृद्ध थे । “ऐसा है?" देशमुख को दिखाते हुए मिसेज देशमुख ने मेरा गुप्तांग हथेली में भरकर ऐसे उठाया था जैसे भाला उठाते हैं, फेंकने से पहले। देशमुख की आँख एकबारगी पूरी खुली थी, फिर मुँद गई थी। आँख की कोर से दो बूँद चू गई थी चुपचाप । मिसेज देशमुख ने भी देखा था। मिसेज देशमुख के चेहरे पर मैंने एक आध्यात्मिक सुकून देखा था । यह प्रतिशोध की आध्यात्मिकता। ऐसा ही आध्यात्मिक सुकून मैंने हमेशा बाबा के चेहरे पर भी पाया था। उस दिन उन्होंने मुझे ज्यादा पैसे दिए थे। मैंने चुपचाप पैसे रख लिए थे पर आँखों में सवाल चुपचाप नहीं बैठे थे। शायद उन्होंने वह इबारत पढ़ ली थी। “तुम मेरे प्रतिशोध में सहयोगी बने इसलिए।” वह बोली थी।
ISBN
9789350722701
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