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Prayog Champaran

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प्रयोग चम्पारण - 
मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है, कहने वाले गाँधी ने चम्पारण सत्याग्रह के दौरान अपनी वेश-भूषा बदली, भोजन बदला, संघर्ष का नया तरीक़ा अपनाया और लगभग जादू वाले अन्दाज़ में वहाँ के लोगों और बाहर से जुटे अपने सहयोगियों से ज़बरदस्त रिश्ता और संवाद क़ायम किया। जिस इलाक़े को वे नहीं जानते थे, जिस नील को नहीं जानते थे, जिस बोली भोजपुरी और दस्तावेज़ों की कैथी लिपि को नहीं जानते थे उनसे उनका संवाद और सम्बन्ध कैसे हुआ और उन्हें गाँधी ने कितना बदला यह तो हैरान करता ही है लेकिन गाँधी ने चम्पारण को नील से मुक्ति दिलाने के साथ देश और दुनिया को उस ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति दिलाने की शुरुआत भी कर दी जिसका खुफ़िया और प्रशासनिक तन्त्र हर घर, हर व्यक्ति से लेकर दुनिया पर नज़र रखता था। और जब सड़क, रेल, फ़ोन और लन्दन से तीन-तीन केबल लाइनों के ज़रिये जुड़कर यह महाबलि ख़ुश हो रहा था कि अब उसके राज को कोई ख़तरा नहीं हो सकता, तब गाँधी ने किस तरह अपने कम्युनिकेशन कौशल से राज को उखाड़ा, यह किताब उसी चीज़ को समझने की कोशिश है। वर्षों के श्रम, अध्ययन और चम्पारण तथा गाँधी से रिश्ता रखनेवाले लेखक ने इस पहेली को समझने-बताने का यह कैसा प्रयास किया है यह पाठक ही तय कर सकते हैं।

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Prayog Champaran
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Publication Bharatiya Jnanpith
अरविन्द मोहन (Arvind Mohan)

"अरविंद मोहन - पत्रकार, लेखक और अनुवादक अरविंद मोहन, जनसत्ता, इंडिया टुडे और हिन्दुस्तान में क़रीब ढाई दशक की पत्रकारिता करने के बाद अभी लोकनीति, सीएसडीएस में भारतीय भाषा कार्यक्रम में सम्पादक हैं। इन्होंने पत्रकारिता, मज़दूरों के पलायन और भारतीय जल संचयन प्रणालियों पर किताब लिखने के अलावा उदारीकरण और गुजरात दंगों ('ग़ुलामी का ख़तरा' तथा 'दंगा नहीं नरसंहार') पर पुस्तकें सम्पादित की हैं। उनकी किताबें 'प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा' और 'पत्रकार और पत्रकारिता प्रशिक्षण' पुरस्कृत और चर्चित रही हैं। इनके अलावा उन्होंने अमर्त्य सेन, विमल जालान, राजमोहन गाँधी, सच्चिदानन्द सिन्हा, आशुतोष वार्ष्णेय तथा रजनीपाम दत्त की किताबों समेत दर्जन भर अनुवाद भी किये हैं। अभी वे नोबल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन की किताब 'डिप्रेशन इकोनॉमिक्स' का अनुवाद कर रहे हैं जो वाणी प्रकाशन से ही छपकर आने वाली है। "

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