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Premchand : Hindu Muslim Ekta Sambandhi Kahaniyan Evam Vichar

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"प्रेमचन्द : हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी कहानियाँ एवं विचार - प्रेमचन्द की प्रतिष्ठा एक कहानीकार के रूप में है। लेकिन अपने समय के समाज और उसके पिछड़ेपन के बारे में जितना उन्होंने सोचा और कहा, शायद ही किसी और ने कहा हो। उपनिवेशवादी समाज, साम्प्रदायिकता, पिछड़ेपन के ख़िलाफ़ अपनी प्रगतिशील सोच को उन्होंने कहानियों में पिरो दिया। उनके विचार न सिर्फ़ उनके समय, बल्कि आज के यथार्थ पर भी आलोचनात्मक टिप्पणी की तरह हैं। यह एक बड़ी सच्चाई है कि धर्म अपनी ढेर सारी कमज़ोरियों और पाखण्ड के बावजूद समाप्त नहीं होता। सोवियत संघ के विघटन के बाद उससे जुड़े राष्ट्रों में धार्मिक भावनाएँ फिर प्रबल हो उठी हैं। ऐसे में प्रगतिशील दृष्टिकोण के बावजूद यही अनुमान किया जा सकता है कि समय के प्रवाह में धार्मिक भावनाएँ दब जाती हैं, समाप्त नहीं होतीं। प्रेमचन्द को इसका ज्ञान था, इसीलिए वे धर्मों को समाप्त करने के बदले इनमें सामंजस्य के बिन्दु ढूँढ़ते हैं, ताकि व्यक्ति सम्प्रदायवादी भावनाओं से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति भी अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन कर सके। आज भी हमें अपने-अपने धर्मों के वर्चस्व की चिन्ता मनुष्यता की चिन्ता से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण जान पड़ती है। हम अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, ऐसा हमने विगत वर्षों से संकेतित किया है। ऐसे में प्रेमचन्द को पढ़ना न सिर्फ़ सुखद बल्कि एक दिशा देने वाला है। यह पुस्तक प्रेमचन्द के विस्तृत रचना-संसार में से चुनकर बनाये किसी गुलदस्ते की तरह है जिसमें हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी कहानियों और विचारों को इकट्ठा किया गया है। शोधार्थियों और आम पाठकों के लिए यह पुस्तक निश्चय ही उपयोगी होगी। "
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Premchand : Hindu Muslim Ekta Sambandhi Kahaniyan Evam Vichar
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रवीन्द्र कालिया (Ravindra Kaliya)

रवीन्द्र कालिया

जन्म : 11 नवम्बर, 1938; जालन्धर, पंजाब।

शिक्षा : हिन्दी साहित्य में एम.ए.।

कुछ समय तक हिसार के डिग्री कॉलेज में प्राध्यापन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘खुदा सही सलामत है’, ‘17 रानाडे रोड’, ‘ए.बी.सी.डी.’ (उपन्यास); ‘नौ साल छोटी पत्नी’, ‘सत्ताईस साल की उम्र तक’, ‘ग़रीबी हटाओ’, ‘चकैया नीम’, ‘ज़रा-सी रोशनी’, ‘गलीकूचे’, ‘रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ’ (कहानी); ‘कॉमरेड मोनालिज़ा’, ‘स्मृतियों की जन्मपत्री’, ‘मेरे हमक़लम’, ‘सृजन के सहयात्री’, ‘ग़ालिब छुटी शराब’ (संस्मरण); ‘नींद क्यों रात-भर नहीं आती’, ‘तेरा क्या होगा कालिया’, ‘राग मिलावट मालकौंस’ (व्यंग्य)।

सम्पादन : भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘भाषा’ का सह-सम्पादन। ‘धर्मयुग’ में वरिष्ठ उप-सम्पादक। ‘मेरी प्रिय सम्पादित कहानियाँ’, ‘मोहन राकेश की श्रेष्ठ कहानियाँ’ सहित लगभग पचास पुस्तकों का सम्पादन। ‘वर्तमान साहित्य’ के कहानी महाविशेषांक, ‘साप्ताहिक गंगा यमुना’, ‘वागर्थ’ और ‘नया ज्ञानोदय’ का सम्पादन।

सम्मान व पुरस्कार : ‘शिरोमणि साहित्य सम्मान’ (पंजाब शासन), ‘राममनोहर लोहिया सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘प्रेमचन्द सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान); ‘पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी पुरस्कार’ (मध्य प्रदेश शासन) आदि।

अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों के सन्दर्भ में अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, सूरीनाम, दक्षिण अफ़्रीका आदि देशों की यात्राएँ।

विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में रचनाएँ शामिल। देश-विदेश की कई भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। विभिन्न सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य रहे रवीन्द्र कालिया ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ के पूर्व निदेशक भी थे।

निधन : 09 जनवरी, 2016

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