रामायण के महिला पात्र - भारतीय जन-जीवन के साथ रामकथा का बहुत गहरा सम्बन्ध है। रामकथा के प्रथम प्रवक्ता महर्षि वाल्मीकि ने इसे इतनी रमणीय शैली में प्रस्तुत किया था कि वह न केवल परवर्ती कवियों के लिए अक्षय सम्बल प्रदान करती रही, बल्कि साधारण जनता भी अपनी दिनचर्या की कई जटिल समस्याओं को सुलझाने में इसके विभिन्न प्रसंगों और पात्रों से प्रेरणा लेती रही है। रामकथा के समालोचक इन प्रसंगों और पात्रों को कई दृष्टियों से समझने और समझाने का प्रयास करते रहे। फिर भी यह क्षेत्र इतना उर्वर और विस्तृत है कि इस सम्बन्ध में जितना कहा जाये उतना और कहने को रह जाता है। इसी दिशा में एक अभिनव प्रयास है— प्रस्तुत कृति 'रामायण के महिला पात्र'। इसमें वाल्मीकि रामायण के मात्र प्रमुख महिला पात्रों का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। ये पात्र हैं— जानकी, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहल्या, अनसूया, शबरी, स्वयंप्रभा, तारा, मन्दोदरी, त्रिजटा, और शूर्पणखा। इन पात्रों की सृष्टि के पीछे महर्षि वाल्मीकि की मनोभूमिका को हृदयंगम करने में, आशा है, पाठकों को इस कृति से एक नयी दृष्टि मिलेगी।
"डॉ. पांडुरंग राव -
1930 में आन्ध्र प्रदेश में जनमे डॉ. पाण्डुरंग राव संघ लोक सेवा आयोग, नयी दिल्ली के निदेशक (भाषाएँ) तथा भारतीय भाषा परिषद्, कलकत्ता में निदेशक रहने के बाद भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली के निदेशक पद पर आसीन रहे।
डॉ. राव आन्ध्र प्रदेश में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने हिन्दी में, नागपुर विश्वविद्यालय से 1957 मंं डॉक्ट्रेट किया। शैक्षणिक प्रशासन और विभिन्न साहित्यिक संस्थानों के तकनीकी परामर्शदाता और मानद सदस्य डॉ. राव की संग्लनता निरन्तर लेखन कार्य में बनी रही। उनकी तेलुगु, हिन्दी और अंग्रेज़ी में तुलनात्मक साहित्य, भारतीय दर्शन और साहित्यिक आदान-प्रदान से सम्बन्धित लगभग 50 पुस्तकें प्रकाशित हैं। भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी तीन पुस्तकें— 'रामकथा नवनीत', 'रामायण के महिला पात्र' (दोनों पुस्तकें वाल्मीकि रामायण पर आधारित) तथा एक उपन्यास 'गिरा अनयन नयन बिनु बानी' तेलुगु से अनुवाद प्रकाशित हैं।
डॉ. पांडुरंग राव भाषा और साहित्य की सेवा के लिए आन्ध्र प्रदेश, बिहार और भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हुए।
निधन: 26 दिसम्बर, 2011, दिल्ली में।
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