रामायण : मानवता का महाकाव्य - गुजराती के यशस्वी लेखक गुणवन्त शाह की सशक्त साहित्यिक कृति 'रामायण : मानवतानुं महाकाव्य' का अनुवाद है यह 'रामायण : मानवता का महाकाव्य'। रामायण के इस दीर्घ कथाप्रवाह में जो कुछ निर्मित हुआ है, उसका हमारे हाल के जीवन के साथ बड़ा तालमेल है। युग बीत जाते हैं, विवरण व सन्दर्भ बदल जाते हैं, परन्तु मनुष्य के मूलभूत विचारों में कोई बदलाव नहीं आता। रामायण की पुरातनता में सनातनता का यही रहस्य है। रामायण के राम संस्कृति-पुरुष हैं, पुराण-पुरुष हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धर्मयुक्त मर्यादाओं का पालन करनेवाले नरश्रेष्ठ हैं। और इसीलिए रामकथा वस्तुतः मानवजाति की कथा है, और रामायण मानवता का महाकाव्य। आज भी महाबलवान रावण के सामने एक ऐसी जटायुता जूझ रही है जो उसकी तुलना में भले ही कम बलवान क्यों न हो, अधिक प्राणवान और आत्मवान है। गुणवन्त शाह ने प्रस्तुत ग्रन्थ में रामायण की कथात्मकता को बाधित किये बिना गहरे अनुशीलन से काम किया है। कथारस और शोध का ऐसा सामंजस्य प्रायः कम ही देखने को मिलता है। साथ ही, रामायण की विषयवस्तु के विश्लेषण में उन्होंने आधारग्रन्थ के रूप में वाल्मीकि रामायण को तो लिया ही है, वेदव्यास की अध्यात्मरामायण, बांग्ला में प्रचलित कृत्तिवास रामायण, कम्बरामायण, जयदेव के प्रसन्नराघव, कालिदास के रघुवंश, भवभूति के उत्तररामचरित, उड़ीसा-गुजरात व दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण के विविध प्रारूपों तथा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत' आदि अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का भी भरपूर उपयोग किया है। सन्देह नहीं कि भारतीय ज्ञानपीठ का यह गौरवग्रन्थ भारतीय संस्कृति की सुगन्ध को आज की नयी पीढ़ी तक पहुँचाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
"प्रो. गुणवन्त शाह -
गुजराती के प्रसिद्ध चिन्तक, शिक्षाविद और समाजसेवी। 12 मार्च, 1937 को सूरत में जन्म। प्रारम्भ में एम.एस. विश्वविद्यालय में अध्यापन तत्पश्चात् अमेरिका में दो बार विज़िटिंग प्रोफ़ेसर। प्रशिक्षण संस्थान, चेन्नई में टेक्नीकल टीचर्स शिक्षा विभाग के अध्यक्ष के रूप में (1972-73) सेवाएँ। इंटरनेशनल एसोशिएशन ऑफ़ एजुकेशन फॉर वर्ल्ड पीस के चांसलर (1974-90) के साथ-साथ इंडियन एसोशिएशन ऑफ़ टेक्नालॉजी के अध्यक्ष। दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय सूरत के डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष पद से स्वैच्छिक निवृति लेकर स्वतन्त्र लेखन कार्य।
प्रकाशन: काव्य, उपन्यास, व्यक्ति विचार-चिन्तन, आत्मकथ्य, ललित निबन्ध आदि विधाओं से सम्बद्ध 50 से अधिक पुस्तकें। 'कृष्णनुं जीवन संगीत', 'अस्तित्व नो उत्सव', 'सरदार माने सरदार', 'गाँधी : नवी पेढीनी नजरे', 'विचारोना वृन्दावनमां', 'शक्यताना शिल्पी अरविन्द', 'संभवामि क्षणे क्षणे' तथा 'रामायण : मानवतानुं महाकाव्य' जैसी पुस्तकें विशेष उल्लेखनीय।
पुरस्कार-सम्मान : गुजराती साहित्य को अपने सम्पूर्ण योगदान के लिए दो शिखर पुरस्कार 'रणजितराम सुवर्णचन्द्रक' (1977) एवं 'नर्मद सुवर्णचन्द्रक' (1979)। इनके अतिरिक्त गुजराती साहित्य परिषद् से ' स्वामी सच्चिदानन्द सम्मान' (2001) एवं ' दर्शक सम्मान' (2012) से पुरस्कृत।