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"रूपाम्बरा -
1960 में प्रथम बार प्रकाशित 'रूपाम्बरा' का यह 'पुनर्नवा' संस्करण है। आधुनिक हिन्दी काव्य-संसार में प्रकृति केन्द्रित अभिव्यक्तियों का एक भरा-पूरा उद्यान है। सम्पादक सच्चिदानन्द वात्स्यायन ने इसमें से चुनकर एक स्तवक बनाया है। संकलन की विशिष्टता रेखांकित करते हुए सम्पादक ने भूमिका में कहा है, ""कालिदास ‘प्रकृति के चौखटे में मानवी भावनाओं का चित्रण' करते थे; आज का कवि 'समकालीन मानवीय संवेदना के चौखटे में प्रकृति' को बैठाता है। और, क्योंकि समकालीन मानवीय संवेदना बहुत दूर तक विज्ञान की आधुनिक प्रवृत्ति से मर्यादित हुई है, इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि आज का कवि प्रकृति को विज्ञान की अधुनातन अवस्था के चौखटे में भी बैठाता है।"" संकलित कविताओं के साथ, भूमिका और प्रकृति-काव्य का विश्लेषण करते हुए कुछ लेख इस संकलन को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं।
रघुवीय सहाय की पंक्ति है, 'मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं', इस संकलन में प्रकृति के ऐसे ही अनेक संस्मरण हैं— स्मृतियों को उकसाते, वर्तमान को उल्लसित करते और भविष्य को आश्वस्त करते।
'रूपाम्बरा' के इस 'पुनर्नवा' संस्करण को पाठकों का व्यापक आदर प्राप्त होगा, ऐसा विश्वास है।
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