रूस, रशिया और रासपुतिन : जारशाही का इतिहास
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"पृथ्वी के सबसे बड़े भू-भाग की मिल्कियत रूस को कैसे मिली? क्या यह सदियों से एक महाशक्ति थी? क्या यूनानी और रोमन साम्राज्यों के समय रूस का कोई वजूद था ? यह इतिहास-यात्रा हमें साम्यवादी रूस के लाल आवरण के पीछे ले जाती है। वहाँ झाँकने
पर वोल्गा नदी में कहीं दूर से आते जहाज़ी मिलेंगे। बलालइका वाद्य बजाते शिकारी मिलेंगे। वे व्यापारी मिलेंगे जो रेशम मार्ग से गुज़रते किसी सराय में सुस्ता रहे होंगे । वे मंगोल मिलेंगे जो पूरब से पश्चिम तक परचम लहरा रहे होंगे। वे स्लाव जो अपनी नस्ल, अपनी भाषा, अपनी संस्कृति की कुण्डली मिला रहे होंगे। वे ऑर्थोडॉक्स ईसाई जो अपना नया गढ़ तलाश रहे होंगे। वे ज़ार जिन्होंने नेपोलियन से युद्ध किया। वह तॉलस्तॉय की नताशा का रूमानी नृत्य । वह जारशाही जिसका अन्त विश्व की एक निर्णायक घटना बनी। आख़िर कौन थे रूस ? कैसे बना रशिया ? और कौन था रासपूतिन?
★★★
साइबेरिया से बाल्टिक सागर तक फैले दुनिया के सबसे बड़े देश का इतिहास । एक ऐसा इतिहास जिसके बिना आज की जियोपॉलिटिक्स समझनी असम्भव है। यह इतिहास वाइकिंग युग से होते हुए चंगेज़ ख़ान और जारशाही के ऐसे दौर से गुज़रता है, जिसमें जिजीविषा है, धर्मयुद्ध है, रक्तपात है, षड्यन्त्र है, रोमांस है, क्रान्ति है । यह एक देश ही नहीं, दुनिया के निर्माण की कथा है। एक ऐसे विचार जन्म की नींव है, जिसने आधुनिक विश्व की तासीर तय की । सामन्तवादी से साम्यवादी रूस के सफ़र का रहस्यमय और रोमांचक इतिहास एक नयी क़लम से नये अन्दाज़ में लिखा गया है | 'कुली लाइन्स' के लेखक प्रवीण कुमार झा की इस नयी पुस्तक की गति आज की तेज़ भागती दुनिया के मद्देनज़र है ।
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ISBN
9789355182838