रोशनी किस जगह से काली है
रोशनी किस जगह से काली है -
फ़ज़ल ताबिश उर्दू के बड़े शायर हैं। उनकी शायरी उर्दू में मुक़म्मल स्थान रखती है। उसका हिन्दी लिप्यान्तरण पहली बार छप रहा हो, ऐसी बात नहीं है। मगर यह ज़रूर है कि वह हिन्दी पाठकों के समक्ष व्यापक रूप से पहली बार इनका इज़ाफ़ा हो रहा है। नज़्म हो या ग़ज़ल ताबिश की शायरी में वक़्त का धड़कता हुआ पैमाना है, जिसमें ज़िन्दगी अपनी कई ख़ूबियों के साथ मौजूद है।
फ़ज़ल ताबिश की ग़ज़लों में एक मासूम उदासी है, मगर बेरुखी नहीं है। उमड़ता हुआ ख़्वाब, एक चुभता हुआ शीशा है जो दिल में जज़्ब होता है, एक टहलती हुई हवा का झोंका जो ख़ुद को दुलार लेता है। फ़ज़ल की शायरी की पच्चीकारी शब्दों में नहीं दिखती, मगर संवेदना के स्तर पर बहुत बारीक़ दिखती है। फ़ज़ल जहाँ से खड़े होकर दीन-दुनिया को देखते हैं, उसे उनकी शायरी को बार-बार पढ़ने और समझने से ही समझा जा सकता है।