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Sabhyata Ki Yatra : Andhere Mein

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सभ्यता की यात्रा अँधेरे में - 
'अँधेरे में', मुक्तिबोध की लम्बी कविता पर अमिताभ राय का यह लम्बा विनिबन्ध 20वीं सदी और उसके आगे की जीवनगत रचनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण है। विश्लेषण का शिल्प पाठ की प्रविधि में है। पाठ की गहरी संलग्नता को यहाँ देखा जा सकता है। अमिताभ ने ग़ैरअकादमिक बर्ताव के साथ इस कृति में अपने अन्तःकरण को समीक्षा की दृष्टि से विकसित किया है।
अमिताभ राय ने 'अँधेरे में' का चयन कर एक तरह से साहस का परिचय दिया है। इस कविता के सिरे उनकी बाकी लम्बी कविताओं से जुड़ते हैं। उनके प्रतीक और बिम्ब एक प्रक्रिया में अन्तःसंघर्ष के रास्ते इस कविता में खुलते हुए अपना अर्थ उद्घाटित करते हैं। अँधेरे के भीतर कई जटिल प्रतीक और मिथक हैं और उनकी इमेजरी धूसर, स्याह, राखड़ी, इस्पाती, काली नीली, तेलिया और धुएँली आदि हैं। इनसे वस्तु से अन्तर्वस्तु का रास्ता खोजना था जो लेखक ने अपनी शक्ति भर किया है।
यूँ तो 'अँधेरे में' के अनेक पाठ उपलब्ध हैं लेकिन यह अपनी तरह का पाठ है और पाठ का विस्तार 124 से अधिक पृष्ठों में है। इसमें मुक्तिबोध के 'स्व', 'मैं' और 'वह' को अनेक तरह से उद्घाटित करने का उपक्रम है। कवि के भय, संशय, उद्विग्नता, बेचैनी की शिनाख्त उनके इस विनिबन्ध में अधिक पारदर्शी और पुष्ट ढंग से रूपाकार ले लेते हैं। लेखक ने कविता में कवि लक्षित अनेक विचारों की यात्रा से गुज़रते हुए उनके विज़न को भी प्रकाशित करने का कार्य किया है। इस तरह बने-बनाये फ्रेम से बाहर जो अलक्षित मुक्तिबोध हैं, लेखक ने उन्हें भी अन्वेषित करने का यत्न किया है।
विशेष रूप से मुक्तिबोध के पाठकों, शोधार्थियों और छात्रों के लिए यह किताब अनिवार्य होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।—लीलाधर मंडलोई

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Sabhyata Ki Yatra : Andhere Mein
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अमिताभ राय (Amitabh Ray )

"अमिताभ राय - जन्म: 7 जून, 1980, पटना, बिहार। शिक्षा: पीएच.डी. दिल्ली विश्वविद्यालय से। प्रकाशन: सुमित्रा कुमारी सिनहा पर एक मोनोग्राफ़ लिखा है। बाकी सारा लिखा पत्र-पत्रिकाओं में। तद्भव, पहल, समीक्षा, वसुधा, लमही, नया ज्ञानोदय, वागर्थ आदि पत्रिकाओं में आलोचनात्मक लेख प्रकाशित। लमही के दो उपन्यास विशेषांकों का अतिथि सम्पादन। 'समीक्षा' के सम्पादन से सम्बद्ध। "

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