साहित्यिक पत्रकारिता

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9789387648845
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हिन्दी पत्रकारिता अपने उद्भव से लेकर अब तक मूल रूप से साहित्यिक-सांस्कृतिक ही रही है। वह एक बड़े ध्येय को लेकर चली थी, जो स्वाधीनता के बाद देश में समतामूलक समाज की स्थापना के आदर्श में अपनी भूमिका निभाती है और आगे के वर्षों में उसकी चिन्ताओं तथा सरोकारों के दायरे बढ़ते जाते हैं। यह पुस्तक मूल रूप से साहित्यिक, सांस्कृतिक स्तर पर विमर्श का विषय बने उन सरोकारों, प्रश्नों और सामाजिक चिन्ताओं को परखने का एक प्रयत्न है जो इस दीर्घ यात्रा में शताधिक पत्रिकाओं तथा समाचार-पत्रों के माध्यम से सामने आते हैं। इस प्रयत्न में साहित्य के प्रश्न तो हैं ही, साथ ही संगीत, नृत्य, कला तथा नाट्य जगत के प्रश्न भी हैं जिनसे गुजरकर एक समेकित सांस्कृतिक दृष्टि को खोजने-पाने की कोशिश है। पुस्तक में साहित्यिक पत्रकारिता का इतिहास तो है। ही, वर्तमान की चुनौतियाँ भी हैं और भविष्य की काँटों भरी राह के संकेत भी। यह पुस्तक स्वाधीनता के बाद की साहित्यिक पत्रकारिता के अध्ययन का पहला सम्पूर्ण प्रयत्न है।

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9789387648845
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