समन्दर आज भी चुप है - आम जीवन से जुड़ी अशोक 'मिज़ाज' की ग़ज़लों में देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, प्रेम और सौन्दर्य चेतना के सुर साफ़-तौर पर देखे जा सकते हैं। 'समन्दर आज भी चुप है' में संकलित ग़ज़लों के रुझान इस ओर इशारा करते हैं। संग्रह की तमाम ग़ज़लें अपनी आक्रामकता, तीक्ष्णता, सटीकता आदि गुणों से सामाजिकों का ध्यान शीघ्र लक्ष्य की ओर आकर्षित कर लेती हैं। ख़ास बात यह है कि इनकी ग़ज़लों के शब्द प्रयोग में पूरी मितव्ययिता को ध्यान में रखा गया है। बिम्बों की एक अलग दुनिया है। छन्दों में नूतनता एवं स्वच्छन्दता है। हिन्दी ग़ज़ल की समकालीन धारा में चाहे यथार्थ वर्णन हो या सामाजिक चित्रण, चाहे प्रेम का अभिव्यंजन हो अथवा दार्शनिक विवेचन, अशोक 'मिज़ाज' सबसे भिन्न रहे हैं।—भूमिका से...
"अशोक सिंह ठाकुर 'मिज़ाज' -
जन्म: 23 जनवरी, 1957, सागर (म.प्र.)।
शिक्षा: एम.एससी. (रसायन शास्त्र)।
प्रकाशित पुस्तकें: समन्दरों का मिज़ाज (उर्दू), समन्दरों का मिज़ाज (देवनागरी), सिग्नेचर, ग़ज़लनामा (उर्दू), ग़ज़ल 2000- शेरों का संकलन (सह-सम्पादन), आवाज़, किसी किसी पे ग़ज़ल मेहरबान होती है, मैं अशोक हूँ, मैं मिज़ाज भी (उर्दू), अशोक मिज़ाज़ की चुनिन्दा ग़ज़लें।
पुरस्कार एवं सम्मान: मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी भोपाल द्वारा शिफ़ा ग्वालियरी पुरस्कार, निश्तर ख़ानक़ाही ग़ज़ल स्मृति अवार्ड बिजनौर (उ.प्र.), नयी ग़ज़ल सम्मान, शिवपुरी, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सागर, पन्ना, उमरिया इकाई द्वारा सम्मान, साहित्य सृजन सम्मान, साहित्य सृजन साहित्यिक संस्था नागपुर द्वारा।
"