"समय, समाज और उपन्यास -
अन्य साहित्यरूपों की अपेक्षा उपन्यास कदाचित् सर्वाधिक समाज सापेक्ष रचनारूप है। अपने समाज के प्रति उसके इस गहरे लगाव के संकेत उसके जन्म से ही लक्षित किये जा सकते हैं। जब रॉल्फ़ फॉक्स ने उपन्यास को जीवन के महाकाव्य के रूप में परिभाषित किया तब समाज के प्रति उसकी गहरी सम्पृक्ति ही शायद इसके मूल में थी। उपन्यास यह काम छोटे-छोटे सघन और कलात्मक ब्यौरों के द्वारा करता है। पात्रों की जो दुनिया वह रचता है वह इन ब्यौरों से ही सम्पूर्ण, वास्तविक और विश्वसनीय बनती है।
उपन्यास में कोई भी समय हो सकता है—हज़ारों साल पीछे का सुदूरवर्ती अतीत जो अब विस्मृति के धुन्ध और धुँधलके में खो चुका है या फिर वह समय जो भविष्य के रूप में अभी आने को है। उसके पैर उसके अपने समय में ही होते हैं। अतीत और भविष्य की भी उपन्यास ने अपने जन्म से अबतक अपनी ज़रूरतों के हिसाब से अनेक प्रविधियाँ तलाश की हैं और अभी भी इस तलाश का कोई अन्त नहीं है। इस प्रक्रिया में उसने स्वयं को इतना बदला है कि उसके आरम्भिक रूप से उसकी पहचान भी असम्भव है।
अपने समय के प्रमुख कलारूप उपन्यास को जानने-समझने के लिए मधुरेश की प्रस्तुत कृति 'समय, समाज और उपन्यास' एक ज़रूरी और उपयोगी हस्तक्षेप है।
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जन्म : 10 जनवरी, 1939 को बरेली में एक निम्न-मध्यवित्त परिवार में हुआ। उनकी सारी पढ़ाई वहीं हुई। बरेली कॉलेज, बरेली से अंग्रेज़ी और हिन्दी में एम.ए.। कुछ वर्ष अंग्रेज़ी पढ़ाने के बाद लगभग तीस वर्ष शिवनारायण दास पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, बदायूँ के हिन्दी विभाग में अध्यापन। 30 जून, 1999 को सेवानिवृत्त होकर पूरी तरह साहित्य में सक्रिय। प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘आज की हिन्दी कहानी : विचार और प्रतिक्रिया’, ‘यशपाल के पत्र’, ‘सिलसिला : समकालीन कहानी की पहचान’, ‘क्रान्तिकारी यशपाल : एक समर्पित व्यक्ति’ (सं.), ‘देवकीनन्दन खत्री’ (साहित्य अकादेमी के लिए), ‘सम्प्रति : समकालीन हिन्दी उपन्यास में संवेदना और सरोकार’, ‘रांगेय राघव’ (साहित्य अकादेमी के लिए), ‘राहुल का कथा-कर्म’, ‘हिन्दी कहानी का विकास’, ‘हिन्दी कहानी : अस्मिता की तलाश’, ‘हिन्दी उपन्यास का विकास’, ‘नई कहानी : पुनर्विचार’, ‘यह जो आईना है’ (संस्मरण); ‘परिवेश' के आलोचक प्रकाश चन्द्र गुप्त पर केन्द्रित अंक के अतिथि सम्पादक, ‘अमृतलाल नागर : व्यक्तित्व और रचना संसार’, ‘भैरव प्रसाद गुप्त’ (साहित्य अकादेमी के लिए), ‘मैला आँचल का महत्त्व’ (सं.), ‘दिव्या का महत्त्व’, ‘और भी कुछ’, ‘हिन्दी उपन्यास : सार्थ की पहचान’, ‘यशपाल के पत्र’, ‘कहानीकार जैनेन्द्र कुमार : पुनर्विचार’, ‘हिन्दी आलोचना का विकास’, ‘मेरे अपने रामविलास’, ‘भारतीय लेखक : यशपाल’ पर केन्द्रित विशेषांक के अतिथि सम्पादक, ‘यशपाल रचना संचयन’ (सं.) (साहित्य अकादेमी के लिए), ‘यशपाल : रचनात्मक पुनर्वास की एक कोशिश’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा : पाठ और पुनर्पाठ’ (सं), ‘यशपाल रचनावली की भूमिकाएँ’, ‘मार्क्सवादी आलोचना और फणीश्वरनाथ रेणु’ (सं.), ‘जुझार तेजा : लज्जाराम मेहता’ (सं.) ‘रजिया सुल्ताना बेग़म उर्फ़ रंग-महल में हालाहल : किशोरीलाल गोस्वामी’ (सं.), ‘अश्क के पत्र’, ‘सौन्दर्योपासक ब्रजनन्दन सहाय’ (सं.)। सम्मान : ‘समय माजरा सम्मान’, राजस्थान (2004); ‘गोकुलचन्द्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार’, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी (2004); राज्यपाल/कुलाधिपति द्वारा महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय की कार्य परिषद् में नामित (2009)