समीक्षा के व्यावहारिक सन्दर्भ : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
शुक्ल जी की आलोचक दृष्टि रचनाओं के भीतर गुज़रने का एक उपक्रम है। रचना की केन्द्रीय संवेदना को समझना उनके आलोचना-कर्म का प्रमुख धर्म रहा है। यह उनका अपना वैशिष्ट्य है कि आलोचक के रूप में उनके द्वारा रचना के साथ न्याय किया गया है। नये तथा पुराने सभी रचनाकारों ने उनकी बेबाक टिप्पणियों की सदैव प्रशंसा ही नहीं की बल्कि मुक्त कण्ठ से अपनी स्वीकारोक्ति भी दी है। मेरी साहित्यिक अभिरुचि में आचार्य शुक्ल के इसी शास्त्रीय चिन्तन का अनुनाद है। आचार्य शुक्ल को समझने का तात्पर्य भारतीय आलोचना पद्धति को आत्मसात् करना है। इस पुस्तक में उनकी आलोचनात्मक दृष्टि के अनुरूप सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आलोचना को मुख्य प्रतिपाद्य बनाया गया है। विद्यार्थियों के लिए शुक्ल जी को जानना इस रूप में अनिवार्य है कि उनके बिना साहित्य के विद्यार्थी को रचनाकर्म से जुड़ी किसी भी विधा को समझने में जिस तीक्ष्ण दृष्टि की आवश्यकता होती है, वह उससे सर्वथा वंचित रह जाता है। इसी आवश्यकता को देखते हुए मैंने शुक्ल जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ-साथ उनकी साहित्यिक संवेदना को विशद रूप से वर्णित किया है। -प्रो. मंजुला राणा संयोजक एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग हे.न.ब. गढ़वाल (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल)