समकालीन पत्रकारिता मूल्यांकन और मुद्दे

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समकालीन पत्रकारिता मूल्यांकन और मुद्दे - 
पत्रकारिता वह आधुनिक आईना है, जिसमें हम अपने समय की तस्वीरें रोज़ देखते हैं और सोचते हैं कि यथार्थ में मुठभेड़ कर रहे हैं। लेकिन यह कोई निर्जीव या तटस्थ आईना नहीं है। यथार्थ की ही शक्तियाँ इस आईने के इन्द्रजालिक ढाँचे की रचना करती हैं। अतः इस आईने की जाँच न केवल समकालीन पत्रकारिता की विशेषताओं और विसंगतियों की छानबीन है, बल्कि उस सामाजिक ढाँचे की भी परख है, जिसके भीतर वह अपना काम करती है। इस दृष्टि से समकालीन पत्रकारिता का यह समवेत मूल्यांकन में भाग लेनेवालों में सभी क्षेत्रों के विशिष्ट लोग हैं- राजनीतिकर्मी, विचारक, संचार विशेषज्ञ और पत्रकार। विचारधारा की भी विविधता है। फलस्वरूप विभिन्न दृष्टियों से समकालीन पत्रकारिता के पूरे परिदृश्य का यह जायज़ा व्यापकता और गहराई, दोनों गुणों से लैस है। समकालीन पत्रकारिता का राजनीतिक विवेक क्या है? यह उचित और स्वाभाविक है कि वह व्यावसायिक तकाज़ों को अनदेखी न करे, किन्तु व्यावसायिक मूल्यों के आगे आत्मसमर्पण क्या एक अलग तरह की घटना नहीं है? देश में जिस अधकचरी औद्योगिक संस्कृति की रचना हो रही है, उसने पत्रकारिता के बाहरी और भीतरी ढाँचे को किस-किस तरह प्रभावित किया है? स्त्री के साथ उसका सलूक कैसा है? हिन्दी पत्रकारिता का संकट हिन्दी भाषी समाज के सामान्य संकट की ही अभिव्यक्ति नहीं है? यह हिन्दी में सम्भवतः पहली पुस्तक है, जिसमें परम्परा और आधुनिकता, दोनों के ही रचनात्मक तकाज़ों का सम्मान करते हुए न केवल सभी ज़रूरी मुद्दों को उभारने की कोशिश की गयी है, बल्कि उन मूल्यों की खोज का बेचैन प्रयास भी है, जो कठिनतर होते जा रहे समकालीन यथार्थ के बीच निष्कम्प प्रकाश स्तम्भ की तरह हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। पत्रकारिता के साथ किसी भी रूप में जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ज़रूरी और मूल्यवान पुस्तक।

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9788170553366
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