समकालीन साहित्य विकास विस्थापन और समाज
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विकास, विस्थापन और साहित्य, साहित्य के अध्ययन के क्षेत्र में एकदम नया विषय है। अभी तक आलोचना के क्षेत्र में इस विषय को लेकर कोई पुस्तक नहीं प्रकाशित हुई है। समाजशास्त्र के क्षेत्र में विकास को लेकर एक-दो पुस्तकें आ गयी हैं। भारत विभाजन - सम्बन्धी विस्थापन एवं शरणार्थी समस्याओं को लेकर पुस्तकें उपलब्ध हैं। लेकिन विकास, विस्थापन तथा उसके हेतु जो मानवीय एवं पर्यावरण-पारिस्थितिक संकट पैदा हुआ है, वह विभाजन सम्बन्धी विस्थापन से बिल्कुल अलग है। समकाल में इसी मुद्दे को लेकर साहित्य रचा जाता है, किन्तु उसके समग्र अध्ययन का कार्य नहीं हुआ है, जिसकी सख्त ज़रूरत है। इसे मद्देनजर रखते हुए कालटी श्रीशंकराचार्य विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में जो संगोष्ठी हुई, उसमें प्रस्तुत प्रपत्रों के साथ कुछ और आलेख जोड़कर पुस्तक बनाने का प्रयास हुआ, जिसका यह सुखद परिणाम है।
ISBN
9789389012248
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