संविधान सभा भाषायी विमर्श
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"जो हिन्दुस्तानी नहीं जानते, उन्हें हिन्दुस्तान में रहने का अधिकार नहीं है। जो लोग यहाँ भारत का विधान निर्माण करने आये हैं और हिन्दुस्तानी नहीं जानते हैं, वे इस सभा का सदस्य होने के योग्य नहीं हैं।
—आर.वी. धुलेकर,
10 दिसम्बर, 1946
★★★
अंग्रेज़ी से हमारा बहुत हित साधन हुआ है, उसके द्वारा हमने बहुत कुछ सीखा है तथा उन्नति की है। किन्तु किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।
—पण्डित जवाहरलाल नेहरू
13 सितम्बर, 1949
★★★
कुछ लोग समझते हैं कि जब अंग्रेज़ी नहीं होगी तो हम मर जायेंगे। यह तो ऐसा हुआ कि शराब पीना बन्द हो जाये तो कुछ लोग मर जायेंगे, जो उनको दारू पीने को नहीं मिलेगा। अगर अंग्रेज़ी जाने से कुछ थोड़े लोग मर जाते हैं तो क्या हुआ? हमें तो सारे राष्ट्र और देश का हित देखकर क़दम उठाना चाहिए।
—लक्ष्मी नारायण साहू,
13 सितम्बर, 1949
★★★
एक ऐसी भाषा अस्तित्व में आ जाये जिसे भारत के सभी लोग न केवल बोलें और लिखें भी, बल्कि जिससे भारत सरकार का राजकीय कार्य भी किया जाये । हम इसके लिए सहमत हो गये हैं कि वह भाषा हिन्दी होगी।
—डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी,
13 सितम्बर, 1949
★★★
अंग्रेज़ी के ज्ञान से भारतीयों के लिए साहित्य, विचार तथा संस्कृति के एक बहुत बड़े भण्डार के द्वार खुल गये। मेरी समझ में नहीं आता कि अंग्रेज़ी के प्रति इतनी कटुता का रुख़ क्यों अपनाया जा रहा है और उसे मिटा देने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? यह जानबूझकर लोगों को हानि ही पहुँचाना है।
—फ्रैंक एंथनी
13 सितम्बर, 1949
★★★
सन् 1947 के पार्टिशन के बाद पाकिस्तान ने अपनी नेशनल ज़बान उर्दू होने का ऐलान किया है और उसी के रिएक्शन की वजह से आज यहाँ हिन्दुस्तान में हिन्दी और देवनागरी को रस्मुलखत मुकर्रर किया जा रहा है।
—क़ाजी सैयद करीमुद्दीन
13 सितम्बर, 1949
★★★
जिस प्रकार अंग्रेज़ी अथवा कोई अन्य भाषा हमारे लिए राष्ट्रभाषा नहीं है, उसी प्रकार हिन्दी भी राष्ट्रभाषा नहीं है। हमारी अपनी भाषाएँ हैं, जो राष्ट्रभाषाएँ हैं।
—टी. ए. रामलिंगम चेट्टियार
13 सितम्बर, 1949
★★★
यह सबसे बड़ी खाई थी जिसके कारण हम एक-दूसरे से अलग हो सकते थे। हमें कल्पना करनी चाहिए कि यदि दक्षिण, हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को स्वीकार नहीं करता तो क्या होता? हमने यथासम्भव बुद्धिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष और आशा है कि इसके लिए भावी सन्तति हमारी सराहना करेंगी।
—डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
14 सितम्बर, 1949
"
ISBN
9789369441464
"जो हिन्दुस्तानी नहीं जानते, उन्हें हिन्दुस्तान में रहने का अधिकार नहीं है। जो लोग यहाँ भारत का विधान निर्माण करने आये हैं और हिन्दुस्तानी नहीं जानते हैं, वे इस सभा का सदस्य होने के योग्य नहीं हैं।
—आर.वी. धुलेकर,
10 दिसम्बर, 1946
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अंग्रेज़ी से हमारा बहुत हित साधन हुआ है, उसके द्वारा हमने बहुत कुछ सीखा है तथा उन्नति की है। किन्तु किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।
—पण्डित जवाहरलाल नेहरू
13 सितम्बर, 1949
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कुछ लोग समझते हैं कि जब अंग्रेज़ी नहीं होगी तो हम मर जायेंगे। यह तो ऐसा हुआ कि शराब पीना बन्द हो जाये तो कुछ लोग मर जायेंगे, जो उनको दारू पीने को नहीं मिलेगा। अगर अंग्रेज़ी जाने से कुछ थोड़े लोग मर जाते हैं तो क्या हुआ? हमें तो सारे राष्ट्र और देश का हित देखकर क़दम उठाना चाहिए।
—लक्ष्मी नारायण साहू,
13 सितम्बर, 1949
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एक ऐसी भाषा अस्तित्व में आ जाये जिसे भारत के सभी लोग न केवल बोलें और लिखें भी, बल्कि जिससे भारत सरकार का राजकीय कार्य भी किया जाये । हम इसके लिए सहमत हो गये हैं कि वह भाषा हिन्दी होगी।
—डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी,
13 सितम्बर, 1949
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अंग्रेज़ी के ज्ञान से भारतीयों के लिए साहित्य, विचार तथा संस्कृति के एक बहुत बड़े भण्डार के द्वार खुल गये। मेरी समझ में नहीं आता कि अंग्रेज़ी के प्रति इतनी कटुता का रुख़ क्यों अपनाया जा रहा है और उसे मिटा देने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? यह जानबूझकर लोगों को हानि ही पहुँचाना है।
—फ्रैंक एंथनी
13 सितम्बर, 1949
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सन् 1947 के पार्टिशन के बाद पाकिस्तान ने अपनी नेशनल ज़बान उर्दू होने का ऐलान किया है और उसी के रिएक्शन की वजह से आज यहाँ हिन्दुस्तान में हिन्दी और देवनागरी को रस्मुलखत मुकर्रर किया जा रहा है।
—क़ाजी सैयद करीमुद्दीन
13 सितम्बर, 1949
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जिस प्रकार अंग्रेज़ी अथवा कोई अन्य भाषा हमारे लिए राष्ट्रभाषा नहीं है, उसी प्रकार हिन्दी भी राष्ट्रभाषा नहीं है। हमारी अपनी भाषाएँ हैं, जो राष्ट्रभाषाएँ हैं।
—टी. ए. रामलिंगम चेट्टियार
13 सितम्बर, 1949
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यह सबसे बड़ी खाई थी जिसके कारण हम एक-दूसरे से अलग हो सकते थे। हमें कल्पना करनी चाहिए कि यदि दक्षिण, हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को स्वीकार नहीं करता तो क्या होता? हमने यथासम्भव बुद्धिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष और आशा है कि इसके लिए भावी सन्तति हमारी सराहना करेंगी।
—डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
14 सितम्बर, 1949
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