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Bharatiya Jnanpith
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"संक्रान्त -
'संक्रान्त' कैलाश वाजपेयी की चौंसठ कविताओं का संग्रह है। सब इधर की लिखी हुई और चुनी-चुनी। इनकी शिल्पगत अभिनवता और निदाघ में फूलते गुलमोहर के छत्तों जैसी मोहक भाव-चेतना इन्हें सहज ही औरों से भिन्न बना देती है।
देखने से लगेगा कि इनमें अधिकतर रचनाएँ नकारात्मक हैं: स्वर में भी, प्रेरणा में भी बात ही ऐसी है। वह एक बड़ी विशेषता है इनकी हम उसे पश्चिमी दर्शन का प्रभाव मानें चाहे आज के यन्त्र युग की देन, पर इतना अवश्य है कि ऐसी दृढ़ता के साथ 'ना' को प्रश्रय देने के लिए भी एक आस्था जैसे तत्त्व की अपेक्षा होती है। और तब उस नकारात्मकता के द्वारा क्या हम एक विशेष अर्थ को नहीं सकारते होते? ये कविताएँ नकारात्मक हैं उस विशेष अर्थ का संवहन करती हुई।
संवेदना की दृष्टि से, इस संग्रह में एक और वे रचनाएँ हैं जो समाज के झूठे-झुठलाये हुए तत्त्वों के साथ समझौता न कर पाने की सचाई और जीवन तथा घटनाओं के साथ क्रियात्मक योग न बैठा पाने की विवशता में जनमी हैं; और दूसरी ओर जीवन के विसंगति बोध से युक्त वे रचनाएँ हैं जो अधकचरे सत्यों के रूप में प्रचलित परम्परागत मूल्यों और उनका पोषण करनेवाली समूह-चेतना के प्रति खोज और आक्रोश के भाव में व्यक्त हुई हैं। और सचमुच यही तो स्वर है जिसमें आज की युवा पीढ़ी का मानस गूँजता और प्रतिध्वनित होता है!
इसीलिए और भी ये कविताएँ पुकारती हैं कि इन्हें पढ़ा जाये और इनकी कचोट को सहा जाये। इनमें सभी कुछ नया है; नयी तरह से काव्य को, या जिसे 'नयी कविता' कहते हैं उसे, कैलाश वाजपेयी ने यहाँ एक आयाम दिया है।
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Bharatiya Jnanpith
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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