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संस्कार-संहिता

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संस्कार-संहिता
संस्कार संस्कृति के परिचायक ही नहीं, उसके नियामक भी होते हैं। संस्कार नहीं, तो संस्कृति नहीं। बात इतनी ही नहीं, संस्कार सम्यक् नहीं, तो संस्कृति भी सम्यक् नहीं, बल्कि संस्कार यदि बुरे पड़ जाएँ, तो निश्चय मानिए कि संस्कृति भी अच्छी न हो पाएगी, इसलिए संस्कारों की सजगता समृद्धशाली संस्कृति के लिए बहुत आवश्यक है, और जब संस्कार समृद्ध होंगे, तो निश्चय मानिए कि संस्कृति भी समृद्ध होगी।
संस्कारों में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावों का विशेष महत्त्व है। कोई संस्कार कब, कैसे, क्यों, किसे, कहाँ के आधार पर ही करना श्रेयस्कर होता है, इसके सम्यक् निर्धारण के लिए इस पुस्तक में संस्कारों के क्रम, समय, मुहूर्त, अवस्था तथा संस्कारों की सम्यक् विधि का निरूपण किया गया है।
यह कृति संस्कारों के सैद्धान्तिक पक्ष के साथ-साथ प्रयोग-विधि को जानने एवं समझने की दृष्टि से पठ्नीय संग्रहणीय है।

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