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सारांश अलविदा यू.जी.

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सारांश.. यू. जी. अलविदा 
"मौत के बारे में बोलने वाले मरना नहीं चाहते। मैं जाना नहीं चाहता और मैं रहना नहीं चाहता।” 
- यू. जी. कृष्णमूर्ति 
प्रसिद्ध है कि यू.जी. ने परम ज्ञान को अस्तित्व की नाड़ीगत और जैविक स्थिति माना है जिसका कोई धार्मिक, मनोवैज्ञानिक या रहस्यात्मक गूढ़ार्थ नहीं है। उन्होंने प्रवचन नहीं किये, संस्थाएँ नहीं बनायीं, सभाएँ नहीं कीं। और हमेशा घोषित किया कि मनुष्य जाति के लिए उनका कोई सन्देश नहीं है।
उन्हें 'गुरुविरोधी' के रूप में जाना जाता है। वे "क्रोधावेश से ग्रस्त ऋषि" हैं और "विचार को ठुकराने वाले विचारक" हैं। मान्य विश्वासों को ध्वस्त करने में उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। उन तमाम आधारों को ठुकरा दिया, जीने के लिए मनुष्य जिनका इस्तेमाल करता है। जो लोग उनके पास गये, उन सबसे उनकी आधार-व्यवस्था छीन कर बदले में अपनी कोई व्यवस्था देने से उन्होंने इन्कार कर दिया। हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि हर व्यक्ति को अपना सत्य ख़ुद खोजना है।
और जब यू. जी. को मालूम हो गया कि जाने का समय आ गया है तो जीवन को और अधिक खींचने के लिए डॉक्टरी सहायता लेने के सारे प्रयास उन्होंने विफल कर दिये। प्रकृति और शरीर को अपना रास्ता चुनने की आज़ादी दी। 22 मार्च 2007 की दोपहर में इटली के बैलेक्रोसिया नगर में यू.जी. का देहान्त हो गया। 
मरणासन्न व्यक्ति के बिस्तर के पास निगरानी करने वाले महेश भट्ट का यह बहुत ही यथार्थपूर्ण, बहुत ही व्यक्तिगत विवरण है।
इसमें उन अन्तिम दिनों की कहानी है जो फ़िल्मकार महेश भट्ट ने यू.जी. कृष्णमूर्ति के सान्निध्य में बिताये। यह ब्यौरा बताता है कि यू.जी. ने मौत के बीच लेखक को और सबको ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा बता दिया है।             

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