सत्कथा कही नहीं जाती

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समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में मुकेश वर्मा का अपना एक स्थान है। इनकी ये कहानियाँ जीवनानुभवों से सींच कर निकली हुई कहानियाँ हैं। ऐसा लगता है मानो ये कहानियों के जरिए जीवनानुभवों से मुक्ति का मार्ग तलाश रहे हों। एक कथाकार के रूप में मुकेश वर्मा की रेंज बहुत बड़ी और व्यापक है। एक हद तक समाज की अलग-अलग विद्रूपताओं और विडम्बनाओं को अपनी कथाओं के माध्यम से समझने का आईना हैं ये कहानियाँ। सच तो यह है कि ये कहानियाँ भूगोल में गुमशुदा आम आदमी की तलाश के साथ-साथ एक अलग धरातल और लगभग अनदेखे कोने और अछूते विषय की कहानियाँ हैं। इन कहानियों में शहर और गाँव-कस्बे की सभ्यताओं का द्वन्द्व साफ़ परिलक्षित होता है। यानी इनमें समाज का वह विद्रूप चेहरा है जिससे तेजी से बढ़ता पूँजीवाद और अमानवीयता रह-रहकर छीज रही है। यही विशेषता इन कहानियों में एक ख़ास किस्म की रवानी पैदा करता है। विचार इन कहानियों में से सारतत्व की तरह निकलकर आता है और ये मनुष्य की जीवन्तता और नवनवोन्मेष का वितान फैलाती, जिन्दगी के झंझावातों और आपदाओं में उलझकर नये रास्ते ही नहीं तलाशती हैं, बल्कि अपनी सहजता में जीवन की मुश्किलों और बेचारगी का वृत्तान्त रचती हैं। इन कहानियों की बड़ी विशेषता है इनकी तीखी, शोख़ और इनकी वह खिलन्दड़ रचनात्मक शैली, जो पाठक की अँगुली पकड़ उसे अपने साथ चलने के लिए बाध्य करती है। इसीलिए ये स्थितियों और सामाजिक सरोकारों में जीवित रहने के संघर्ष के क्रम में अलग-अलग सामाजिकताओं से रू-ब-रू कराती हैं। इन कहानियों की एक और विशेषता है इनका विलक्षण खुरदरापन जिसे लेखक ने अपने लोक अनुभवों से सींचकर रोचक, आत्म-व्यंग्य लहजे और पैनेपन के साथ प्रस्तुत किया है। मुकेश वर्मा की कहानियों में सहज और प्रवाहपूर्ण शैली होने से कथारस और पठनीयता और बढ़ जाती है। कहानी पढ़ने के बाद पाठक लम्बे समय तक उसके पात्रों और घटनाओं के बारे में सोचता रहता है। ये कहानियाँ शहरी और नगरीय जीवन के मध्यवर्गीय समाज के यथार्थ को उद्घाटित करती हैं। शहरी जीवन से लेकर गाँव-कस्बों से जुड़ी आम आदमी की संवेदनाएँ, समस्याएँ, उनके सपने, उनके संघर्ष, घुटन, संत्रास और उनके यथार्थ सभी कुछ तो है इन कहानियों में निस्सन्देह मुकेश वर्मा का अनुभव क्षेत्र आम हिन्दी कथाकारों से बहुत अलग व व्यापक है। इसलिए इस संग्रह की कहानियों में विषयगत विविधता भी है और नयापन भी। कथा- शैली इनकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है, तो संवादों की बहुलता तथा सरलता इनका सबल पक्ष है। वास्तव में इन कहानियों का जीवन आम मध्यवर्गीय जीवन है। आसपास के हमारे अपने से दिखते पात्रों के भीतर उठते-गिरते मनोभावों की कहानियाँ हैं ये छोटे-छोटे विवरण कहानियों की सघनता बढ़ाते हैं और तर्क की कसौटी पर ये कहानियों अपनी बात कहने की पूर्ण क्षमता रखती हैं।

-भगवानदास मोरवाल

ISBN
9789350000892
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