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सत्यार्थ-प्रबोध - 
दिगम्बरों के मुकुटमणि, आध्यात्मिक गुरु निर्ग्रन्थ नाथ श्री विशुद्धसागर जी के चिन्तन-मन्थन चैतन्य के तत्त्वज्ञान से प्रसूत, नैतिक शिक्षा स्वरूप मौलिक कृति है— "सत्यार्थ प्रबोध"।

यह आनन्दित जीवन की प्रेरक नीतिपरक 31 निबन्धों से समन्वित अत्यन्त जनोपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। जो पाश्चात्य संस्कृति से अशान्त पथ-भ्रमित मानवों को स्वात्म-संस्कृति के प्रति चेतना प्रदान कर, सुप्त मानवीय आदर्शों को जाग्रत कर नैतिकतापूर्ण जीवन निर्माण के लिए पठनीय एवं अनुकरणी है।
सत्यार्थ प्रबोध हिन्दी हितैषियों के लिए अत्यन्त सरल, सुबोध है। इसमें न्याय है, पर न्याय की शाब्दिक जटिलता नहीं। शब्द-शब्द, वाक्य-वाक्य में मतार्थ है, पर धर्म-सम्प्रदाय, पन्थवाद का पक्षपात नहीं। मानवीयता की नैतिक शिक्षा है, पर हटवाद नहीं। सत्थार्य का उद्योतन है, पर कर्तावाद नहीं। वाक्य-वाक्य में नीतियाँ गुंथित हैं, सर्वोन्नति के सूत्र हैं, पर कर्तृत्व की गन्ध नहीं। भाषा मधुर है, विषय जन-जन के लिए जीवनोपयोगी है।
सत्यार्थ प्रबोध यह मात्र मानव-विकास ही नहीं, अपितु समाज, राष्ट्र व विश्व विकास के सुखद सूत्रों से ओत-प्रोत है।

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Satyarth-Prabodh
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दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर (Digambaracharya Vishuddhsagar)

"दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर – जन्म: भिण्ड (म.प्र.), 18.12.1971। गृह ग्राम: रूर (म.प्र.) नाम: राजेन्द्र (लला) पिता का नाम: सेठ श्री रामनारायण (मुनिश्री विश्वजीत सागरजी) माता का नाम: श्रीमती रत्तीबाई जैन (क्षु. श्री विश्वमति माताजी) लौकिक शिक्षा: दसवीं कक्षा। क्षुल्लक दीक्षा: भिण्ड, 11.10.1989। ऐलक दीक्षा: पन्ना, 19.06,1991। मुनि दीक्षा: श्रेयांस गिरि, 21.11.1991। (कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा) आचार्य पद: औरंगावाद (महा.) 31.03.2007 दीक्षा गुरु: गणाचार्य श्री विरागसागर जी पग बिहार: दस राज्य, 73000 कि.मी. पंचकल्याणक: 99 मुनि दीक्षा: 38 प्रसिद्धि: आध्यात्मिक प्रवचनकार। प्रकाशित ग्रन्थ: 150 देशना ग्रन्थ: 80 कविता लेखन: 5000 नीति शास्त्र: 26 कृतियाँ (20,000 सूक्तियाँ)। समग्र साहित्य: 11,50,000 श्लोक प्रमाण। रूचि: मौन साधना। मातृभाषा: हिन्दी। "

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