सौन्दर्य तत्त्व विमर्श
सौन्दर्य तत्त्व विमर्श -
लेखक द्वारा 2002-2004 के दौरान 'तेलुगु साहित्य का इतिहास' लिखने के प्रयासों का ही फल हैं ये निबन्धात्मक पुस्तक। सामान्यतः जब दूसरी भाषा के साहित्य का इतिहास लिखा जाता है तब नाम, साहित्य, ऐतिहासिक सन्दर्भ और वर्गीकरण पर बल दिया जाता है। अधिकांशतः इतिहास लिखने वाला दूसरी भाषा के साहित्य की गहराइयों से परिचित नहीं होता। नरसिम्हाचारी जी हिन्दी में सौन्दर्यशास्त्र के अद्वितीय आलोचक होने के साथ-साथ तेलुगु साहित्य के भी आलोचक थे। उन्होंने बहुत से आलोचनात्मक निबन्ध लिखे। ये सभी निबन्ध निर्वाक शैली व पैने तेवरों से युक्त हैं। आचार्य नरसिम्हाचारी तेलुगु साहित्य अकादमी सहित अनेक मंचों से जुड़े रहे।
इन निबन्धों में चर्चित निबन्धकारों का चयन काफ़ी रोचक है। इनमें से कई निबन्धकारों को तेलुगु साहित्य की महान हस्तियाँ नहीं माना जाता, और न ही तेलुगु साहित्य के समग्र प्रतिनिधि। अधिकांश भारतीय भाषाओं की तरह तेलुगु आलोचना में भी प्रगतिवादी लेखकों की प्रशंसा और अन्य की उपेक्षा की जाती है। श्री नरसिम्हाचारी जी ने अपने दृष्टिकोण को समतल परन्तु विशिष्ट सौन्दर्यशास्त्रीय रखा है और लेखकों का चयन उनकी सौन्दर्यात्मकता का ही फल है।