शिक्षा, दर्शन और समाज समकालीन विमर्श

In stock
Only %1 left
SKU
9789389563412
Rating:
0%
As low as ₹556.00 Regular Price ₹695.00
Save 20%
भारतीय ज्ञान परम्परा में परा और अपरा विद्याओं और वेद-वेदांग सहित विविध प्रकार के दर्शनों के साथ सर्वांगपूर्ण शिक्षा की अवधारणा, ज्ञान की पद्धति तथा उसके संसाधनों की विस्तारपूर्वक व्यवस्था की गयी थी। धीरे-धीरे यह परम्परा दुर्बल होती गयी। अंग्रेज़ी उपनिवेशकाल में शिक्षा का जो कायापलट हुआ उसने शिक्षा और उसके द्वारा भारतीय मानस की बनावट और बुनावट को गहनता से प्रभावित किया। उसने शिक्षा के अमृत वृक्ष को उखाड़ फेंका और ज्ञान की गवेषणा करने वाले जिज्ञासु की जगह अर्थपिपासु की परम्परा स्थापित की। समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा को निरस्त करते हुए भारतीय चेतना में पाश्चात्य ज्ञान की श्रेष्ठता को स्थापित किया गया। उपेक्षा और अनुपयोग के कारण भारतीय ज्ञान परम्परा अधिकांश भारतीयों के लिए अपरिचित और अप्रासंगिक-सी होती गयी। उसके प्रति दुर्भाव भी पनपने लगा और उसे तिरस्कृत किया जाने लगा। इसके स्थान पर राजनीतिक पसन्द और नापसन्द के अनुसार शिक्षा में यथासमय विविध प्रकार के परिवर्तन और प्रयोग किये जाते रहे। आज शिक्षा भाराक्रान्त-सी होती जा रही है और उसमें सामर्थ्य की दृष्टि से सार्थक बदलाव नहीं आ सका है।
ISBN
9789389563412
Write Your Own Review
You're reviewing:शिक्षा, दर्शन और समाज समकालीन विमर्श
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP