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सीगिरिया पुराण

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सीगिरिया पुराण - 
"प्राचीन सिंहल के बौद्ध पुराण 'महावंश' पर आधारित यह अनूठा उपन्यास हिन्दी कथा साहित्य में एक अछूता व दुर्लभ योगदान है।"
—डॉ. उषाकिरण खान 
पद्मश्री से सम्मानित लेखिका व इतिहासज्ञ
पाँचवीं शताब्दी में श्री लंका राजनीतिक गृहकलह व प्रतिशोध का धधकता हुआ जंगल है; त्रि-सिंहल का राजमुकुट तो मानो बच्चों की गेंद हो—जो झपट सके, ले ले। कई महाराज तो कुछ सप्ताह या महीने भी न टिक पाये। किन्तु धातुसेना महाराज पिछले अट्ठारह वर्षों से अनुराधापुर के सिंहासन पर आसीन हैं; फिर वे अपनी बहन को जीवित ही जला कर मृत्युदण्ड देने की भारी भूल कर बैठते हैं।
महाराज का भाँजा मिगार उतने ही निर्मम प्रतिशोध की शपथ लेता है। वह अपनी प्रतिज्ञा एक परिचारिका से उत्पन्न, धातुसेना के बड़े बेटे कश्यप को मोहरा बना कर पूरी करता है, और नाम मात्र को उसे राजा बना देता है। मिगार की कठपुतली बनकर कश्यप उसकी धौंस और अपने किये के पछतावे में रात-दिन घुटता रहता है। क्या कश्यप मिगार की चंगुल से कभी छूट पायेगा? धातुसेना का छोटा बेटा, युवराज मोगल्लान, पल्लव महाराज से सैन्य-सहायता माँगने के लिए भारत पलायन कर जाता है। कश्यप को हर घड़ी चिन्ता लगी रहती है: मोगल्लान न जाने कब कोई विशाल सेना लेकर चढ़ आये। कश्यप जानता है अनुराधापुर-वासी उसे पितृहन्ता मानते हैं; मोगल्लान के आते ही उसके साथ उठ खड़े होंगे। अनुराधापुर में रहना निरापद नहीं। कश्यप नयी राजधानी के लिए कोई ऐसी जगह ढूँढ रहा है जहाँ मोगल्लान न पहुँच सके। अन्ततः वह सुरक्षा कवच उसे मिल तो जाता है, किन्तु समय आने पर क्या वह कारगर भी सिद्ध होगा?

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9789357750301
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प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’ (प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’)

प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’

जन्म : 1946, मोतीहारी; मूल निवासी—सिंहवाड़ा, दरभंगा (बिहार)।

पटना विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में क्रमश: स्नातक तथा उत्तर-स्नातक।

तीन वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; 1970 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुने गए जिसके बाद 36 वर्षों तक राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार में कार्यरत रहे तथा 2006 में भारत सरकार में भारी उद्योग व लोक उद्यम मंत्रालय के सचिव-पद से सेवानिवृत्त हुए। सन् 2006-08 के दौरान यूरोप के लुब्लियाना नगर में स्थित ‘इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर प्रोमोशन ऑफ़ एंटरप्राइजेज’ के महानिदेशक रहे।

सरकारी मुलाज़िम रहते हुए भी ख़याल आजीवन साहित्य-साधना से जुड़े रहे। इनकी कविताओं, नज़्मों और ग़ज़लों के प्रकाशित कृतियाँ हैं : ‘टूटा हुआ पुल’, ‘रात गए’, ‘धूप तितली फूल’, ‘यह ज़बान भी अपनी है’, ‘इंतखाब’, ‘पता ही नहीं चलता’, ‘यादों के गलियारे में’, ֹ‘रानी रूपमती की फ़िल्म कथा’ चर्चित उपन्यास का नाम है।

क्लासिकी चीनी कविता के अग्रणी हस्ताक्षर बाइ जूई की दो सौ कविताओं के इनके हिन्दी अनुवाद ‘तुम! हाँ, बिलकुल तुम’ तथा ‘बाँस की कहानियाँ’ नामक संकलनों में 1990 के दशक में प्रकाशित हुए और बहुप्रशंसित रहे। बाद के वर्षों में ‘ख़याल’ ने कई गद्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया जिनमें तुर्की के नोबेल-विजेता ओरहान पामुक के उपन्यास ‘स्नो’ का हिन्दी अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।

‘ख़याल’ उर्दू के जाने-माने वेबसाइट ‘रेख्ता ऑर्ग’ में सम्मिलित शायर हैं और इनकी ग़ज़लें जगजीत सिंह, उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि गा चुके हैं।

ई-मेल : pthakur06@yahoo.com

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