सूरकाव्य में लोकतान्त्रिक चेतना
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9789388684163
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मध्यकालीन समय और समाज को लोक चेतना की आस्वादक भूमि का पक्ष, भारतीय भक्ति परम्परा को नये मूल्य बोध के साथ सम्प्रेषित करने में सहायक सिद्ध हुआ है। उससे न केवल आज के नये विमर्शों के सूत्र प्रतिभाषित होते हैं बल्कि नारी जागरण के और आर्थिक दृष्टि से समतामूलक समाज की रचनाशीलता को भी लोकतान्त्रिक रूप प्रदान करते हैं। सूर का काव्य लोकतान्त्रिकता की कसौटी पर नये विमर्शों की ओर हमारा ध्यान बरबस खींच लेता है। डॉ. समीक्षा पाण्डेय का प्रस्तुत कार्य हमारी मध्यकालीन आलोचना दृष्टि को विकसित करने में सहायक होगा। इस सुन्दर कृति के लिए मेरी हार्दिक बधाई... प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी _ पूर्व अध्यक्ष साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली
ISBN
9789388684163
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