सुन्दर लोग और अन्य कविताएँ
सुन्दर लोग और अन्य कविताएँ -
कविता और विचार के अन्तरसम्बन्धों पर चर्चा करते हुए अक्सर इस बात की अनदेखी की जाती रही है कि कविता किसी विचार की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति अथवा स्थिति का संवेदनात्मक वर्णन नहीं बल्कि अपने में एक चिन्तन-विधि है- हाइडेगर से शब्द लेकर कहें तो एक प्रकार की 'मेडिटेटिव थिंकिंग'। इसीलिए कविता में विचार करना और कविता का विचार करना फ़र्क बात है। कविता और समय के अन्तरसम्बन्धों को लेकर भी यही कहा जा सकता है कि जो कविता अपने को इतिहास की सेवा में उपस्थित नहीं करती बल्कि आक्टोवियो पॉज के इस कथन का सदैव स्मरण करती रहती है कि प्रत्येक कविता 'कविता के लाभ के लिए कविता और इतिहास के सामंजस्य का प्रयास है, वही इतिहास के लिए भी वास्तविक अर्थों में प्रासंगिक होने की सार्थकता अर्जित कर पाती है।
यह तो नहीं कहा जा सकता कि लाल्टू का कवि कविता में विचार करने से हमेशा ही पूरी तरह गुरेज करता है, लेकिन अधिकांशतः उनकी कविता एक स्वायत्त चिन्तन-प्रक्रिया होने की अपनी हैसियत अर्जित करने की ओर उन्मुख दिखाई पड़ती है और इसी के चलते वह इतिहास को निचोड़ कर न केवल यह जान पाती है कि 'दुःख किसी भी भाषा में दुनिया का सबसे गन्दा शब्द है, बल्कि ख़ुदकुशी करती लड़कियों में भी 'जीने की उम्मीद' तथा जिसका इन्तजार है - उसके 'सभ्यता की धक्कमपेल में फँसे होने' का अहसास भी कर पाती हैं।
यह अहसास वही कविता कर पाती है, जो अपना रास्ता अर्थात अपनी काव्य-विधि और मुहावरा अर्जित करने की और उन्मुख हो। लाल्टू का कवि जाने-अनजाने इसी रास्ते पर चलता दिखाई देता है जो इस बात का आश्वासन भी है कि इस रास्ते पर वह जो कुछ पायेगा, उससे उसके हर पाठक को भी वह मिल सकेगा, जिसकी अपेक्षा से वह कविता की तरफ जाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हिन्दी कविता के सुधी पाठक लाल्टू की इन कविताओं की और बार-बार लौटेंगे।
-नन्द किशोर आचार्य