सुनहरा सिक्का

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सुनहरा सिक्का - 
सागर-तट पर कुछ उजाला-सा होने लगा था। सूर्य की धुँधली किरणें, अन्धकार का पीछा कर रही थीं। मछेरे की पत्नी बैठी-बैठी अपने इस अपराध पर विचार कर रही थी-“ओफ! मैंने बुरा काम किया है-बहुत बुरा! यदि अब मुझे वह मारे-पीटे, तो मुझे कोई शिकायत न होगी। और यह भी अद्भुत बात है कि मैं उससे भयभीत हूँ, जिससे प्रेम करती हूँ। क्या लौटा आऊँ? नहीं सम्भव है, वह क्षमा कर दे।"
वह इन्हीं विचारों में लीन थी कि वायु से द्वार हिला, यह देख सुनकर उसका कलेजा धक से हो गया। उठी, और किसी को न पाकर फिर वहीं चिन्तित-सी बैठ गयी। अभी नहीं आया-बेचारा- उसे इन बालकों के लिए कितना कष्ट सहन करना पड़ता है। अकेले आदमी को सात पेट पालने पड़ते हैं और-मगर यह कैसी चीख है, पुकार है।

ISBN
9788188714117
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