Swatantrata Samar Ke Bhoole Bisare Sitare
प्रस्तुत पुस्तक का प्रथम लेख कुँवर चैन सिंह पर केन्द्रित है, जिन्होंने सन् 1824 में अंग्रेज़ों से संघर्ष किया था। पुस्तक का अन्तिम लेख सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के सत्याग्रहियों पर केन्द्रित है। इस प्रकार पुस्तक में क़रीब 118 वर्ष की कालावधि की सत्यकथाएँ सम्मिलित हैं। 14 वर्षीय हरिगोपाल बल से धवलकेशी बुज़ुर्ग राजा शंकर शाह तक की वीरगाथाओं का समावेश पुस्तक में हुआ है। इस पुस्तक में ढ़ाका से पेशावर तक और लखनऊ से टिन्नेबैली तक के रणबांकुरों की कहानियाँ हैं ।
बचपन से ही मेरे मन में स्वतन्त्रता सेनानियों और क्रान्तिकारियों के प्रति प्रबल आकर्षण रहा है । मेरे पूज्य पिताजी सर्जक, समीक्षक और चिन्तक अशोक ‘वक़्त’ जी के नाना जी पं. श्रीकृष्ण दुबे ने अपनी युवा अवस्था में रेलवे की नौकरी में रहते हुए गुप्त रूप से क्रान्तिकारियों को सहयोग दिया था। सन् 1989 में पिताजी की छोटी-सी पुस्तक 'क़िस्सा आज़ादी का' प्रकाशित हुई थी, जिसकी 17 हज़ार प्रतियाँ मध्यप्रदेश शासन ने क्रय की थीं। इस पुस्तक के माध्यम से ही मैंने पहली बार स्वतन्त्रता संग्राम के विषय में कालक्रमानुसार जानकारी प्राप्त की थी। तब से ही मैं पिताजी से स्वतन्त्रता सेनानियों की कहानियाँ सुनती आ रही हूँ। मेरी स्वर्गवासी साहित्यकार माँ डॉ. राज़ी 'वक्त' से भी बचपन में मैंने स्वतन्त्रता सेनानियों की कुछ कथाएँ सुनी थीं। पिताजी लगभग प्रतिदिन ही प्रख्यात कवि पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन के पास जाते थे। वे अक्सर मुझे भी अपने साथ ले जाते थे ।
- पुस्तक से
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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