स्वातंत्रयोत्तर हिंदी कविता में प्रणय चित्रण

In stock
Only %1 left
SKU
9788170556114
Rating:
0%
As low as ₹120.00 Regular Price ₹150.00
Save 20%

स्वातन्र्योरित्तर हिन्दी कविता में प्रणय-चित्रण - 
 हर युग में, हर समाज में वासना की, काम की उद्दाम अभिव्यक्ति पर नीतिनियमों ने, धार्मिक परम्पराओं ने, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियों ने ज़िद्दी पहरेदार की नज़र रखी है और काम वासनाएँ हैं कि जो किसी भी स्थिति में संयम रखना नहीं जानतीं। इस कशमकश से मनुष्य को बचाने के हेतु प्रकृति ने कुछ सुरक्षा कवच भी उसे सौंपे हैं। स्वप्न ऐसा ही एक सुन्दर सुरक्षा कवच है। कला और साहित्य निर्मिति का कार्य भी इसी प्रकार का कवच कुण्डल है। कामवासना के आवेग और समाज के बन्धनों में अटका हुआ, दुर्बल व्यक्ति जहाँ विकृति का शिकार बनता है वहाँ कलाकार, कवि, साहित्यिक रचना निमिति में इन विकृतियों को.... बहाता चला जाता है।
 कविता का मूल स्वभाव और प्रेम की प्रकृति देखने के उपरान्त दोनों में ग़जब का साम्य दृष्टिगोचर होता है। एक क्षण ऐसा आता है कि प्रेम अतीन्द्रिय अनुभूतियों की चाह सँजोने लगता है। मन की इन तरल अनुभूतियों को हूबहू पकड़ने की और साकार करने की क्षमता कविता जैसा तरल माध्यम छोड़कर और किसमें प्राप्त होगी?
 सफल कला एवं साहित्य संवेदनशील क्षणों की उत्स्फूर्त अभिव्यक्ति होती है। हाँ, सभ्यता और संस्कृति के विकास के फलस्वरूप इन सहजात प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति में उसने परिवर्तन एवं परिवर्धन अवश्य ही किया। बीसवीं शती तो विश्व के सभी देशों के लिए आश्चर्यपरक परिवर्तन लानेवाली जादुई शती सिद्ध हुई। स्वातन्त्र्योत्तर काल तो भारतीय मानस के लिए ख़ास कर साहित्यिक मानस के लिए से भरा हुआ काल बनके उपस्थित हुआ। पाश्चात्य प्रभाव, बदलती परिस्थितियाँ, परिवर्तित परिवेश, टूटते-बनते जीवन मूल्य, कलात्मक मूल्य और बाढ़ में फँसी मानसिकता इनकी चकाचौंध में जीवन को प्रेरणा देनेवाला समाज-जीवन ही अत्यधिक मात्रा में झुलस गया, आहत हुआ। स्वातन्त्र्योत्तर प्रणय कविता इसका जीवित दस्तावेज़ है।

ISBN
9788170556114
Write Your Own Review
You're reviewing:स्वातंत्रयोत्तर हिंदी कविता में प्रणय चित्रण
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP