"तलघर -
वक़्त के पाँव में निशानियों के जूते होते हैं। यह एक ऐसा तन्त्र है जहाँ झूठ की अगरबत्तियाँ जलाकर, सच्चाई का मर्सिया पढ़ा जाता है। नफ़े-नुक़सान का गणित करनेवाले बहुत अच्छे दुनियादार तो होते हैं, बहुत अच्छे नागरिक नहीं। रिश्ते भी काग़ज़ के फूलों जैसे हो चुके हैं, न रखने को दिल करता है, न फेंकने को। उसकी हँसी जितनी ज़्यादा बेमतलब थी, उतने ज़्यादा सवाल पैदा करती थी, पता नहीं, वो हँसी थी या वक्तव्य! आख़िर में बचता भी क्या है, सम्बन्धों की बूढ़ी कथाएँ और स्मृतियों का समृद्ध आख्यान!
ज़िन्दगी सिर्फ़ एक बार मिलती है और अमूमन उसे 'रफ़ ड्राफ़्ट' की तरह जिया जाता है।
अलविदा— जैसे कोई लफ़्ज़ न हो, कैंची हो, रिश्तों के थान को चीरती हुई।
एक दिन ऐसा आता है जब आपकी मेज़ पर कोई फ़ाइल नहीं होती, कोई ऑफ़िसर आपके नाम नोट नहीं लिखता, अटैंडेंस रजिस्टर से नाम हट जाता है और फिर कुलीग के ज़ेहन से भी आपका नाम हट जाता है। ...मौत से पहले की ये छोटी-छोटी मौतें होती हैं।
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"ज्ञानप्रकाश विवेक
जन्म : 30 जनवरी, 1949 (बहादुरगढ़ में)।
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद पूर्णकालिक लेखनI
प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास : गली नम्बर तेरह (1998), अस्तित्व (2005), दिल्ली दरवाज़ा (2006), आखेट (2009), चाय का दूसरा कप (2010), तलघर (2012), डरी हुई लड़की (2017 ), नयी दिल्ली एक्सप्रेस (2019), व्हीलचेयर (2023); कहानी-संग्रह : अलग-अलग दिशाएँ (1983), जोसफ़ चला गया (1986), शहर गवाह है (1989), पिताजी चुप रहते हैं (1991), उसकी ज़मीन (1993), इक्कीस कहानियाँ (2001), शिकारगाह (2003), सेवानगर कहाँ है (2007), मुसाफ़िरख़ाना (2007), बदली हुई दुनिया (2009), कालखण्ड (2015), छोटी-सी दुनिया तथा अन्य कहानियाँ ( 2024 ); ग़ज़ल - संग्रह : धूप के हस्ताक्षर (1984), आँखों में आसमान (1990), इस मुश्किल वक़्त में (1996), गुफ़्तगू अवाम से है (2008), घाट हज़ारों इस दरिया के (2018), दरवाज़े पर दस्तक (2019), काग़ज़ी छतरियाँ बनाता हूँ (2021); कविता-संग्रह : दरार से झाँकती रोशनी; आलोचना : हिन्दी ग़ज़ल की विकास यात्रा (2006), हिन्दी ग़ज़ल दुष्यन्त के बाद (2014), हिन्दी ग़ज़ल की नयी चेतना (2018 )।
फ़िल्म का नाट्य रूपान्तर : 'क़ैद' कहानी पर जनसिनेमा द्वारा फ़िल्म का निर्माण। शिमला दूरदर्शन द्वारा 'मोड़' तथा 'बेदखल' कहानियों पर लघु फ़िल्म का निर्माण। ‘शिकारगाह' कहानी, क्लासिक कहानियों की शृंखला में, दूरदर्शन वाराणसी द्वारा फ़िल्मांकन। 'पापा तुम कहाँ हो' कहानी का नाट्य मंचन। संकेत रंग टोली द्वारा, चाय का दूसरा कप उपन्यास का रेडियो नाटक प्रसारण, नैशनल चैनल दिल्ली।
सम्मान : हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा तीन बार 'कृति सम्मान'। 'बाबू बालमुकुन्द गुप्त सम्मान' (2009)। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ' आजीवन साहित्य सेवा सम्मान' (2021)। राजस्थान पत्रिका द्वारा वर्ष 2000 का 'सर्वश्रेष्ठ कहानी सम्मान'। 'इन्दु शर्मा अन्तरराष्ट्रीय कथा सम्मान' (कथा सम्मान यूके) डरी हुई लड़की वर्ष 2021।
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