Publisher:
Bharatiya Jnanpith

तत्त्वार्थ-वार्तिक(राजवर्तिक) भाग-1

In stock
Only %1 left
SKU
Tattvartha-Vartika (Rajavartika) Vol.1
Rating:
0%
As low as ₹332.50 Regular Price ₹350.00
Save 5%

तत्त्वार्थवार्तिक
उमास्वामी कृत तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक सूत्र पर वार्तिक रूप में व्याख्या किये जाने के कारण इस महाग्रन्थ को तत्त्वार्थवार्तिक कहा गया है। ग्रन्थकार भट्ट अकलंकदेव ने सूत्रों पर वार्तिक ही नहीं रचा, वार्तिकों पर भाष्य भी लिखा है। इसी कारण इसकी पुष्पिकाओं में इसे तत्त्वार्थवार्तिक व्याख्यानालंकार संज्ञा दी गयी है। इसका एक नाम राजवार्तिक भी है। तत्त्वार्थवार्तिक का मूल आधार आचार्य देवनन्दी पूज्यपाद की सवार्थसिद्धि है। दूसरे शब्दों में, वृक्ष में बीज की तरह इसमें सवार्थसिद्धि का पूरा तत्त्वदर्शन समाविष्ट है।
तत्त्वार्थवार्तिक में यों तो दर्शन-जगत् के अनेक नये विषयों की चर्चा की गयी है, पर इसकी प्रमुख विशेषता है- इसमें चर्चित सभी विषयों के ऊहापोहों या मत-मतान्तरों के बीच समाधान के रूप में अनेकान्तवाद की प्रतिष्ठा करना।
जैनधर्म के अध्येता प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी के अनुसार, "राजवार्तिक और श्लोकवार्तिक के इतिहासज्ञ अभ्यासी को ज्ञात होगा कि दक्षिण भारत में जो दार्शनिक विद्या और स्पर्धा का समय आया और बहुमुखी पाण्डित्य विकसित हुआ, उसी का प्रतिबिम्ब इन दोनों ग्रन्थों में है। यद्यपि दोनों वार्तिक जैनदर्शन का प्रामाणिक अध्ययन करने के पर्याप्त साधन हैं, किन्तु इनमें से राजवर्तिक का गद्य सरल एवं विस्तृत होने से तत्त्वार्थ के सम्पूर्ण टीकाकारों की आवश्यकता अकेला ही पूर्ण करता है।"
इसमें सन्देह नहीं कि भारतीय दर्शन-साहित्य में, विशेषकर जैनदर्शन के क्षेत्र में, इस ग्रन्थ का एक विशिष्ट स्थान बन गया है। प्रस्तुत है दो भागों में विभाजित इस महान् ग्रन्थ का नवीन संस्करण।

ISBN
Tattvartha-Vartika (Rajavartika) Vol.1
Publisher:
Bharatiya Jnanpith
More Information
Publication Bharatiya Jnanpith
Write Your Own Review
You're reviewing:तत्त्वार्थ-वार्तिक(राजवर्तिक) भाग-1
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/