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तत्त्वार्थवृत्ति
जैन आगम में लोकप्रिय ग्रन्थ 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' को संक्षेप में 'तत्त्वार्थसूत्र' और दूसरे शब्दों में 'मोक्षशास्त्र' कहते हैं। इसके प्रणेता आचार्य उमास्वामी का समय प्रथम शताब्दी ईस्वी माना जाता है। इसकी टीकाएँ सभी कालखण्डों में, सभी आकारों में और विविध दृष्टिकोणों से लिखी गयी हैं। 'सर्वार्थसिद्धि' के रचयिता आचार्य पूज्यपाद और 'तत्त्वार्थराजवार्तिक' के कर्ता भट्टाकलंक-देव ऐसे ही कुछेक प्रमुख आचार्य हैं। आचार्य विद्यानन्दी के 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक' की तुलना आचार्य कुमारिल भट्ट के 'मीमांसाश्लोकवार्तिक' से की जाती है।
लगभग एक हजार श्लोक प्रमाण 'तत्त्वार्थवृत्ति' में आचार्य श्रुतसागरसूरि ने ग्रन्थ को सुबोध शब्दों में समझाने का सार्थक प्रयत्न किया है। 16वीं शताब्दी के आचार्य श्री श्रुतसागर सूरि आचार-व्यवहार में देश और काल के अनुरूप संशोधन के पक्ष में रहे प्रतीत होते हैं, जिसकी समीक्षा आज के अन्तरिक्ष युग की दृष्टि से भी होनी चाहिए।
इस महाग्रन्थ का वैज्ञानिक पद्धति से सम्पादन और सरल शब्दों में भावानुवाद किया है डॉ. महेन्द्र कुमार जैन न्यायाचार्य ने, जो भारतीय न्याय, दर्शन, संस्कृति, इतिहास के पारगामी विद्वान रहे हैं। सिद्धिविनिश्चयटीका, प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि की भाँति यह ग्रन्थ भी विद्वज्जगत् को उनका कालजयी उपहार सिद्ध हुआ है।

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