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तत्त्वार्थसूत्र प्रदीपिका

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तत्त्वार्थसूत्र प्रदीपिका
आचार्य उमास्वामी प्रणीत 'तत्त्वार्थसूत्र' का जैन धर्म में वही स्थान है जो हिन्दू धर्म में गीता, मुस्लिम धर्म में कुरान और ईसाई धर्म में बाइबल का है। संस्कृत भाषा एवं सूत्रात्मक शैली में लिखा गया यह ग्रन्थराज सम्पूर्ण जैन समाज में तो निर्विवाद रूप से समादरणीय है ही, अन्य दर्शनों के विद्वान भी जैन दर्शन का प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसी का आश्रय लेते हैं। यही कारण है कि यह ग्रन्थ सभी विद्यालय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी निर्धारित है।
'मोक्षशास्त्र' के अपर नाम से विख्यात इस ग्रन्थरत्न में 'गागर में सागर' वाली शैली में जीव, अजीव, आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सप्त तत्त्वों का अद्भुत वर्णन किया गया है।
दस अध्यायों में विभाजित यह ग्रन्थ परवर्ती विशाल जैन साहित्य का उपजीव्य भी है। इस पर आज तक विविध भाषाओं में हजारों टीकाएँ लिखी गयी हैं।
प्रस्तुत 'तत्त्वार्थसूत्र-प्रदीपिका' उक्त ग्रन्थराज की एक ऐसी सरल-सुबोध टीका है जो आधुनिक पीढ़ी के लिए वैज्ञानिक दृष्टि एवं नवीन उदाहरणों के साथ जैनदर्शन के तत्त्वज्ञान को स्पष्ट करती है। साथ ही वर्तमान में उसकी उपयोगिता सिद्ध करती है।
बालक से वृद्ध तक सभी को आकर्षित करने वाली एक अनुपम कृति ।

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वीरसागर जैन (Prof. Veersagar Jain)

"प्रो. वीरसागर जैन - जन्म : राजस्थान के ग्राम गुढ़ाचन्द्रजी (करौली) में। शिक्षा : जैनदर्शनाचार्य, प्राकृताचार्य, एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी.। कृतित्व : 'दौलत विलास', 'श्रीपालचरित', 'भारतीय दर्शन में आत्मा एवं परमात्मा', 'तत्त्वार्थसूत्र प्रदीपिका', 'न्याय-मन्दिर' आदि लगभग दो दर्जन पुस्तकें। इनके अतिरिक्त लगभग 60 शोधपत्र। "

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