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थमेगा नहीं विद्रोह

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थमेगा नहीं विद्रोह - 
फिर रौतास ने अपने अंगोछा में सौनपाल की बिखर गई अस्थियों को समेटते हुए सौनपाल की खोपड़ी को इंगित कर कहा, "देख लियो भैया सोनपाल, बुरे करमन की बुरी नतीजी, साल भर सू या इकलौ (अकेला) आसमान की ओर मुँह फाड़े पड़ी है।" उसके पश्चात् उसने सोनपाल की खोपड़ी को सम्बोधित करते आगे कहा, 'अब के जनम मिले तो कुछ अच्छे करम करियो, भइय्या। या जाटक की जूण में मत पड़ियो." उसने सोनपाल की अस्थियों को समेटा और अंगोछा में गाँठ लगाते हुए ताऊ मथुरा को सम्बोधित कर कहा, "ताऊ, इन्सान और आदमीन की तम ने भली कही, जी। अब देखो तनकेक या चिवाणे की ओर, मर के बी हम तौ आदमी कहाँ रहे, जाटव रहे। या बिलांद-भर की ज़मीन में गूजर तो फुँके हैं। था कीणे में, जाटव या कौणे में और बालमीकी ओ.....वा सू बी दूर के कौणे में। खाती और नाई न की कोई कौणी ही ना है सो कहीं बी अपणे मरने नै फूँक देवें हैं लेकिन जाटव और बालमीकीन सू फेर बी दूर, मर के बी आदमी कहाँ बण सकें हैं हम"।
उसके पश्चात अंगोछा में बाँधी गाँठ को और एक बार कसते हुए और सौनपाल को मानो सहलाते हुए एक बार पुनः कहा, "चल भैया सौनपाल, अब किसी अच्छी जूण में पड़ीयो, जाटवन की जूण में मत पड़ीयो नहीं तो मैं तोह अब फिर सू यहीं बिखेर देऊँगी।"
ताऊ मथुरा ने उस मसखरे के एकालाप में व्यवधान देकर कहा, "इस पागल ने बहुत गहरी और मर्म की बात कह दी है, लेकिन इस समय तो दसोंदी को सौंपो अगनी को"

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