ठेले पर ग्लोब
ठेले पर ग्लोब
21वीं सदी में उभरकर आयी नयी पीढ़ी के कहानीकारों में अनुज कुमार एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। ठेले पर ग्लोब उनका ताज़ा कहानी-संग्रह है। अनुज विविधता और विश्वसनीयता के कथाकार हैं। कथ्य और शैली के स्तर पर उनकी कहानियाँ एक-दूसरे से इतनी भिन्न होती हैं कि यह भ्रम होने लगता है कि सभी कहानियाँ अलग-अलग कहानीकारों ने तो नहीं लिखी हैं! ठेले पर ग्लोब भी विविध रंगों की सात कहानियों के साथ एक इन्द्रधनुषी वांग्मय रचता है।
अनुज के इस संग्रह की अधिकतर कहानियाँ बाज़ार के दबाव में मिमियाती इन्सानियत की कहानियाँ हैं। 'बोर्डिंग पास' बाज़ारवाद के कारण टूटते इन्सानी रिश्तों को उजागर करती है, 'फ़ैसला सुरक्षित है' इसका चित्र खींचती है कि विखण्डित होते समाज में किस तरह बाज़ार और मल्टीनैशनल्स सीधे हस्तक्षेप कर फ़ायदा उठा सकते हैं, 'पंजा' कहानी समाज के बाज़ार में तब्दील हो जाने की कथा है, वहीं ठेले पर ग्लोब बज़ारवाद में अन्तर्निहित छली राजनीति के बीच पिसते आम आदमी की कथा कहती है। 'ओढनी' सिर पर मैला ढोने की घृणित प्रथा का विरोध करती हुई अपने अंडरटोन में एक अनछुए प्रेम को समेटकर चलती है। 'दुनिया की सबसे सुन्दर औरत', अव्यक्त प्रेम के कशमकश की कहानी है।
अनुज एक सक्षम कथाकार हैं और क़िस्सागोई उनकी उल्लेखनीय विशेषता है। कहानी पढ़ते हुए पाठकों को ऐसा लगता है कि वे कोई फ़िल्म देख रहे हैं। अनुज को पढ़ते हुए पाठक कहानियों से इतना तादात्म्य स्थापित कर लेता हैं कि हर कहानी उसे अपनी या अपने आसपास के परिवेश की ही कहानी दिखती है। उनकी कहानियाँ रोचकता से सराबोर होती हैं। इस संग्रह की सभी कहानियाँ रोचक और पठनीय हैं।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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