Publisher:
Vani Prakashan
तू जीत के लिए बना
In stock
Only %1 left
SKU
Tu Jeet Ke Liye Bana
As low as
₹159.20
Regular Price
₹199.00
Save 20%
"कवि अगर अपने समय का संस्कृति-पुरुष है तो कविता उसके द्वारा रची गयी सांस्कृतिक थाती। यह संस्कृति क्या है, अगर कोई जिज्ञासा ही कर बैठे तो तमाम तरह से सोच-विचार कर अन्ततः कहना यही पड़ेगा कि एक ऐसा युग-सत्य ज़माना जिससे आँख बचाकर उन राहों की ओर निकल जाना चाहता है जिन्हें सफलता की राहें कहा और माना जाता है। पर ये 'राहें' सत्य और सार्थकता की राहें भी कभी मानी जायेंगी कि नहीं, कहना कठिन है। इसीलिए एक कवि का कहना भूलता ही नहीं कि समय के सघन अँधेरों में जब सारी आवाज़ें खामोश हो जाती हैं, तब जो एक आवाज़ किसी चीख़ या पुकार या आवाहन/उद्बोधन के रूप में सारे ज़माने में सुनाई देती है, वही कवि की आवाज़ होती है।
इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं कि झूठी आवाज़ों का अपना कोई वजूद नहीं होता है पर वह इतना उथला और सतही होता है जैसे इन दिनों के अख़बार या मीडिया चैनल हो गये हैं। ये मुनाफ़े की वे चमकीली जगहें हैं जो दरबारदारी के रंग में रँगी हुई हैं। उन्हें झूठ से कोई ख़ास परेशानी नहीं है। पर कविता तो झूठ को अफ़ोर्ड ही नहीं कर सकती। इसलिए वीरेन्द्र वत्स जैसे कवि जब यह लिखते हैं कि कविता सत्य का प्रबल प्रवाह है, तब वे यह भी याद दिलाते हैं कि सत्य का दूसरा नाम कविता है या कविता का पहला नाम सत्य है। महाकवि तुलसी तब सहज ही याद हो आते हैं- 'सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।' गांधी तो कविता और सत्य को अगल-बगल बिठाकर कहते हैं-सच बोलना ही कविता है।
ऐसे सच को बोलने के लिए कवि में जिस ईमान और साहस की ज़रूरत पड़ती है, उसका प्रमाण कवि द्वारा प्रतिबिम्बित वह जीवनानुभव हुआ करता है, जो उसकी कविता में काव्यानुभव के रूप में दर्ज होता चलता है। वीरेन्द्र वत्स के ये जीवनानुभव हमारे इसी समय और लोक के हैं, जिनमें हमारी अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति है। न केवल एक दर्शक के रूप में बल्कि सीधे-सीधे भागीदार की तरह। हमारे उस लोकतन्त्र में, हमारी अपनी नागरिकता के साथ, जिसे हमारे जन-प्रतिनिधियों ने विवश प्रजात्व में ढाल दिया है। कवि वीरेन्द्र वत्स की कविताएँ इसीलिए हमारी उस विस्मृत नागरिकता की पुकार हैं, जिसके होश में आने पर कोई देश सचमुच देश बनता है और उसके द्वारा स्वीकृत लोकतन्त्र सचमुच लोक का अपना तन्त्र बनता है।
वीरेन्द्र वत्स की कविताएँ अपनी पहली प्रतिज्ञा में इस खोये हुए लोकतन्त्र की बेचैन तलाश हैं। पर यह कोई हवाई तलाश नहीं है, न कोई ऐसा देखा जा रहा जादुई स्वप्न जिसे जानने और पहचानने के लिए किसी गूढ़ या जटिल खोज-यात्रा से हमें गुज़रना पड़े। विपरीत इसके यह एक ऐसी जानी-पहचानी तलाश है, जिसे आज़ादी के बाद एक पूरी काव्य-परम्परा आकुल-व्याकुल होकर ढूँढ़ती रही है।
समकालीन कविता की अधिकांश प्रतिभाएँ जहाँ भाषा और छन्द की एकरसता से ग्रस्त हैं, वहीं इस कवि की कविता के छन्द और भाषा-रूपों की विविधता हम पाठकों को न केवल राहत देती है बल्कि यह उम्मीद भी जगाती है कि गीत-दोहे आदि अनेक तुकान्त छन्द अभी भी निःशेष नहीं हुए हैं और प्रतिभाओं का स्पर्श पाकर वे बार-बार अपनी चमक बिखेरते रहेंगे। कवि वीरेन्द्र वत्स इस दृष्टि से हमारे समय के उन जन समर्पित कवियों में हैं जिनकी कविता की आधारभूत प्रतिज्ञा वह राष्ट्रीय जीवन-यथार्थ है जो इस वक़्त की सबसे बड़ी ख़बर है और दुखद सच्चाई भी, जिसे इस कवि ने अपने दोहों और ग़ज़लों में दर्ज कर ऐसा सांस्कृतिक इतिहास लिख दिया है, जो न केवल चिन्तित और उदास करता है, बल्कि हमसे यह उम्मीद भी करता है कि हम अपनी भूमिका को लेकर कब सोचना शुरू करेंगे
- भूमिका से
"
ISBN
Tu Jeet Ke Liye Bana
Publisher:
Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
---|
Write Your Own Review