तुलसीकाव्य में लोकतान्त्रिक चेतना

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साहित्य अपने रचना-विधान में लोकतान्त्रिक होता है। जिस रचना में अपने समय और समाज के प्रति जितनी ही प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है, वह रचना लम्बे समय तक पढ़ी जाती है और उसकी सांस्कृतिक भूमि उतनी ही मानवीय मूल्यबोध को अपने में आत्मसात करती है। गोस्वामी तुलसीदास का साहित्य इसका प्रमाण है। डॉ. समीक्षा पाण्डेय ने तुलसीकाव्य में लोकतान्त्रिक चेतना पर जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया है उससे हमारी मध्यकालीन आलोचना दृटि को विकसित होने में मदद मिलेगी। डॉ. समीक्षा पाण्डेय को इस अनमोल रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं उनके सारस्वत भविष्य के लिए मंगल कामनाएँ... प्रो. राम सजन पाण्डेय कुलपति बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक
ISBN
9789388684149
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