उदासी मेरी मातृ भाषा है

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प्रकाश अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि और आलोचक थे जिनका दुर्भाग्य से 2016 में दुखद देहावसान हो गया। वे एक भाषा-सजग शिल्प-निपुण कवि और सजगसंवेदनशील आलोचक थे। रज़ा फ़ाउण्डेशन ने उनकी स्मृति में 'प्रकाश-वृत्ति' स्थापित करने का निश्चय किया जिसके अन्तर्गत सुपात्र और सम्भावनाशील युवा लेखकों और कलाकारों की पहली पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना है। लवली गोस्वामी के यहाँ प्रेम में अप्रत्याशित का रमणीय देखा जा सकता है : 'तुम्हारे भीतर जितनी नमी है/उतने कदम नापती हूँ पानी के ऊपर/जितना पत्थर है तुम्हारे अन्दर/उतना तराशती हूँ अपना मन' और फिर 'जब भी प्रेम दस्तक देता है द्वार पर / मैं चाहती हूँ कि मेरे कान बहरे हो जायें/कि सुन ही न सकूँ मैं इसके पक्ष में/दी जाने वाली कोई दलीलें। या कि 'प्रेम के सबसे गाढ़े दौर में/जो लोग अलग हो जाते हैं अचानक/उनकी हँसी में उनकी आँखें कभी शामिल नहीं होतीं।' यह अभिप्राय भी अप्रत्याशित ही है : 'बहुत बदमाश पीपल का घना पेड़ हो तुम/छाँव में बैठी रागनियों को छेड़ने के लिए / पहले उन पर पत्ते गिराते हो....।' रजा फाउण्डेशन की प्रकाश-वृत्ति के अन्तर्गत लवली गोस्वामी की यह पहली कविता पुस्तक प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है। -अशोक वाजपेयी

ISBN
9789389563122
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