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उड़ना जानता हूँ - 
डॉ. संजीव दीक्षित 'बेकल' सहज, सरल और प्रभावी कवि ही नहीं एक बेहतरीन इन्सान भी हैं। पिछले साल उनका एक कविता और ग़ज़ल संग्रह 'धूप को निचोड़ कर' प्रकाशित हुआ था। डॉ. दीक्षित का यह नया काव्य संग्रह उस संग्रह की कविताओं और ग़ज़लों से कई मायनों में आगे की यात्रा है।
डॉ. संजीव दीक्षित 'बेकल' ने इस संग्रह में अनेक ग़ज़लें संग्रहित की हैं, जिन्हें मैं गीतिका की श्रेणी में रखना चाहूँगा; यानी ये हिन्दी मिज़ाज की ग़ज़लें हैं। उर्दू के ग़ज़ल विन्यास से इतर संजीव दीक्षित हिन्दी की गीत परम्परा के अनुसार ही ग़ज़लें लिखने का प्रयास करते हैं और कई बहुत ख़ूबसूरत अश'आर उनकी गीतिकाओं में से निकल कर आये हैं। इनमें रोज़मर्रा ज़िन्दगी से जुड़े उनके अनुभव पगे विचार सामने आते हैं। इसकी कुछ बानगी मैं आपके सामने रख रहा हूँ। अब इस शे'र में उन्होंने अपने अलग ही तेवर के साथ, बिल्कुल नये अंदाज़ में अपनी बात को हमारे सामने रखा है; इस अनूठे कहन का और इसकी गहराई का प्रभाव देखें—

रहा उसके साथ तमाम उम्र मैं 
वो कहता है कि मैं मिला ही नहीं 
कई बार संजीव बहुत ही सुन्दर दृश्य बिम्बों का निर्माण करते हैं; और उनमें अपनी बात को भी बड़ी शिद्दत के साथ रखते हैं
ख़्वाब हक़ीक़त बन जायेंगे खोलो तो पलकों की बाँहें।
संजीव अपनी अभिव्यक्ति में बार-बार संघर्ष का भी ज़िक्र करते हैं। यक़ीनन उनका जीवन संघर्ष से गुज़रा है और उन्होंने अपने इस अनुभव को बख़ूबी अपने भावों में भी ढाला है
कभी गिरा-उठा-चला और फिर दौड़ने लगा 
ज़िन्दगी तेरे साथ जो चला वो सफ़र मैं ही हूँ 
रचनाकार को हमेशा ज़िन्दगी की सार्थकता की तलाश रहती है। वो केवल सफल ही नहीं अपितु सार्थक भी होना चाहता है। इसी सार्थकता की तलाश उनके इस शेर में नज़र आती है-
ए ख़ुदा मेरी जिन्दगी को कोई मायना दे रूह को 
देख सकूँ ऐसा कोई आईना दे
डॉ. संजीव दीक्षित 'बेकल' को मैं उनकी इन अनुभव पगी रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। —नरेश शांडिल्य

 

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डॉ संजीव दीक्षित बेकल (Dr. Sanjeev Dixit Bekal)

"डॉ. संजीव दीक्षित 'बेकल' - ज़िन्दगी तेरे आज में हूँ और गुज़रे कल में भी, कभी आसाँ में हूँ और कभी मुश्किल में भी, मुझे ढूँढ़ो ख़याल के इस बेशकल भीड़ में, मिलूँगा उस 'बेकल' में और इस 'बेकल' में भी। डॉ. संजीव दीक्षित 'बेकल' गत 30 सालों से साहित्य सेवा में संलग्न हैं और अपने कविता-संग्रहों एवं लघु कथाओं के द्वारा हिन्दी पाठक समुदाय से जुड़े हुए हैं। 'बेकल' जी का सर्वप्रथम काव्य-संग्रह 'तिनका—एक सफ़रनामा' 2017 में प्रकाशित हुआ जिसे साहित्य समाज से अत्यधिक प्रशंसा मिली थी। उसके उपरान्त दूसरा एकल काव्य संग्रह 2018 में प्रकाशित, जोकि हिन्दी एवं अंग्रेज़ी संस्करण में था और उसका शीर्षक था 'ज़िन्दगी—एक सफ़रनामा' जिसने पाठकों को ज़िन्दगी के मर्म से साक्षात्कार कराया। इसके अलावा तीन साझा अन्तर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह में भी मुख्य कवि के तौर पर रचनाएँ प्रकाशित। उनकी साहित्य साधना की यात्रा में नयी कड़ी है, 'धूप को निचोड़ कर' काव्य-संग्रह जिसमें पाठक पायेंगे विभिन्न भावनाओं एवं जीवन दर्शन का मिलन जो कि आपको परिपक्व दुनिया में ले जायेगी। डॉ. संजीव दीक्षित पिछले 22 वर्षों से मानव संसाधन एवं प्रगति में अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी में उच्च पद पर पदासीन हैं और अपने योगदान के कारण सर्वप्रसिद्ध हैं। "

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